छीन लेगा मेरा .गुमान भी क्या
इल्म लेगा ये इम्तेहान भी क्या
ख़ुद से कर देगा बदगुमान भी क्या
कोई ठहरेगा मेह्रबान भी क्या
है मुकद्दर में कुछ उड़ान भी क्या
इस ज़मीं पर है आसमान भी क्या
मेरा लहजा ज़रा सा तल्ख़ जो है
काट ली जायेगी ज़बान भी क्या
धूप से लुट चुके मुसाफ़िर को
लूट लेंगे ये सायबान भी क्या
इस क़दर जीतने की बेचैनी
दाँव पर लग चुकी है जान भी क्या
अब के दावा जो है मुहब्बत का
झूठ ठहरेगा ये बयान भी क्या
मेरी नज़रें तो पर्वतों पर हैं
मुझको ललचायेंगी ढलान भी क्या
- वीनस केसरी
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
बहुत खूब वीनस जी। सभी शे’र अच्छे हैं। एक मुकम्मल ग़ज़ल के लिए दाद कुबूल करें।
/इस क़दर जीतने की बेचैनी
दाँव पर लग चुकी है जान भी क्या/
हासिल-ए-ग़ज़ल शे'र.
हार्दिक बधाई वीनस जी.
है मुकद्दर में कुछ उड़ान भी क्या
इस ज़मीं पर है आसमान भी क्या
इस क़दर जीतने की बेचैनी
दाँव पर लग चुकी है जान भी क्या
अब के दावा जो है मुहब्बत का
झूठ ठहरेगा ये बयान भी क्या
पूरी ग़ज़ल शानदार हुई है पर, इन तीन अशआरों पर ढेरों ढेर बधाई लीजिये आ० वीनस जी
आदरणीय वीनस जी बेहतरीन मुरस्सा ग़ज़ल हुई है बहुत बहुत बधाई आपको
वाह वाह आदरणीय वीनस भाई जी एक एक अशआर जानदार शानदार बन पड़ा है. इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए ढेरों दिली दाद कुबूल फरमाएं.
मेरा लहजा ज़रा सा तल्ख़ जो है
काट ली जायेगी ज़बान भी क्या
धूप से लुट चुके मुसाफ़िर को
लूट लेंगे ये सायबान भी क्या
मेरी नज़रें तो पर्वतों पर हैं
मुझको ललचायेंगी ढलान भी क्या
वाह आदरणीय वीनस सर बेहतरीन ग़ज़ल आभार
मेरा लहजा ज़रा सा तल्ख़ जो है
काट ली जायेगी ज़बान भी | वाह वाह !!
बेहतरीन ग़ज़ल भाई जी, बधाई !!
वाह ! हर एक शे'र जानदार , शानदार ! गहरे तक उतरते हुए !
आदरणीय वीनस भाई ,ग़ज़ल पढकर असीम सुख मिला . हार्दिक बधाई .
है मुकद्दर में कुछ उड़ान भी क्या
इस ज़मीं पर है आसमान भी क्या..............veenus sir ..........kya sher kaha hai .........
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