हम है क्या कुछ भी नहीं, ईश अंश ही सार,
मन के भीतर रोंप दे, सद आचार विचार |
त्याग और सहयोग का, जिसके दिल में वास
माली जैसा भाव हो, उस पर ही विश्वास |
समय नहीं करुणा नहीं, बाते करते व्यर्थ,
भाव बिना सहयोग के, साथी का क्या अर्थ |
समीकरण बैठा सके, बहिर्मुखी वाचाल,
संख्या उनके मित्र की, होती बहुत विशाल |
घंटों उठते बैठते, कछु न मदद की आस,
समय गुजारे व्यर्थ में, दोस्त नहीं वे ख़ास |
(मौलिक व् अप्रकाशित)
Comment
बहुत सुन्दर दोहे .. बधाई आदरणीय | सादर
आ0 लक्ष्मण जी सुंदर संदेश देती दोहावली के लिए आपको बहुत बधाई ।
आदरणीय लक्ष्मण भाई , सुंदर दोहावली के लिये बधाइयाँ ॥बाक़ी, आदरणीय योगराज भाई ने इशारा कर दिया है ॥
ओह्ह कई बार आ० लक्ष्मण जी लिखने में जल्दी कर जाते हैं उसी तरह हम पढने में जल्दी कर जाते हैं ...आ० योगराज जी ने सही पकड़ा :))))))
"हम है कुछ भी नहीं, ईश अंश ही सार" में हम के बाद "क्या" शब्द लिखने से रह गया आदरणीय प्रधान सम्पादक जी |
कृपया कर इसे - हम क्या है कुछ भी नहीं,ईश अंश ही सार, कर कृतार्थ करे | सादर
आपका हार्दिक आभार आदरणीया मोहिनी चोर्डिया जी और राजेश कुमारी जी | सादर
पहले दोहे के पहले चरण में:
//हम है कुछ भी नहीं// की मात्राएँ ज़रा दोबारा गिनिए
सुन्दर अर्थपूर्ण दोहे आ० लक्ष्मण जी ...बहुत- बहुत बधाई.
दोस्त की परिभाषा ..माली जैसे ...बहुत सुन्दर दोहे आ. लक्ष्मण जी
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