तेलंगाना पे भिड़े, अपनी मुट्ठी तान।
अपने भारत देश की, लगी दाँव पे आन।।
कोई तोड़े काँच को, पत्र लिया जो छीन।
आगे पीछे भैंस के, बजा रहे हैं बीन।।
मिर्चें लेकर हाथ में, करे आँख में वार।
मानवता इस हाल पे, अश्रु बहाये चार।।
हिस्सा जाता देख कर, हुये क्रोध से लाल।
बरसीं गंदी गालियाँ, ये संसद का हाल।।
चढ़ा करेला नीम पर, अपनी छाती ठोक।
शक्ति संग सत्ता मिली, रोक सके तो रोक।।
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
तेलंगाना पे भिड़े, अपनी भृकुटी तान।
अपने हिन्दुस्तान की, लगी दाँव पे आन।।
:-))
वैसे, भृकुटि सही शब्द है.
अपने हिन्दुस्तान की .. इस चरण को कृपया फिर से देखिये
कोई तोड़े काँच को, पत्र लिया जो छीन।
आगे पीछे भैंस के, बजा रहे हैं बीन।।
हा हा हा हा.. बहुत खूब !
मिर्चें निकाल हाथ में, करे आँख में वार।
मानवता इस हाल पे, अश्रु बहाये चार।।
बढिया... ’निकाल’ जगण (१२१) है जो दोहा के विषम चरण में अमान्य है. लेकिन शब्द-संयोजन के प्रवाह में कलों के सम बन जाने के कारण वह चरण दोष रहित है. वैसे, इस ओर सचेत रहा करें.
बँटवारे की बात पे, हुये क्रोध से लाल।
बरसीं गंदी गालियाँ, ये संसद का हाल।।
यह दोहा बहुत कुछ कहता हुआ है, भाईजी. वैसे, बँटवारे शब्द को अधिक व्यापक क्यों न बनायें जो कि आपके दोहे का मंतव्य भी है.
चुन के आये देखिये, कैसे-कैसे लोग।
इनके मन में खोट है, ये समाज के रोग।।
हम्म्म.. बात तो सही है. मगर दोहा सपाटबयानी नहीं हो गया है.
भाई शिज्जूजी, छंदों पर विशेषकर दोहों पर आपकी कोशिश मुग्ध करती है. बहुत-बहुत बधाई भाई.
एक बात:
छंदों में पे को पर ही लिखा जाय.
पुनः बधाई एवं हार्दिक शुभकामनाएँ
मेरी रचना को मान देने के लिये मैं आप सभी का तहेदिल से शुक्रिया अदा करता हूँ। स्नेह यूँ ही बनाये रखें।
सादर,
बहुत ही सुंदर आदरणीय शिज्जू भाई..
बेहद शर्मसार करते विषय पर, बहुत सुंदर दोहावली . हार्दिक बधाई आपको
आ0 शिज्जू भार्इ जी, बहुत सुन्दर दोहावली---! हार्दिक बधार्इ स्वीकारें। सादर,
चुन के आये देखिये, कैसे-कैसे लोग।
इनके मन में खोट है, ये समाज के रोग।।
किसने चुना. क्या आपका प्रत्याशी श्रेष्ठ था ?
यदि हाँ यो ठीक वर्ना इस बार गलती न हो,
वोट जरूर करियेगा सादरबधाई
अपने संसद के लिए लगी दाँव पे आन
शिज्जू भाई देख लो मेरा हिन्द महान /
आदरणीय शिज्जू भाई , दोहा वली की बहुत सुन्दर रचना हुई है ॥
शिज्जू भाई आपके , दोहे हुये कमाल
सुन्दर शिल्प निभा गये , सुन्दर रहा खयाल ।
आदरणीय शिज्जू जी ..बेहद घृणित कृत्य को बहुत ही सुंदर तरीके से पेश किया है आपने आपको सादर बधाई के साथ
चुन के आये देखिये, कैसे-कैसे लोग।
इनके मन में खोट है, ये समाज के रोग।……… जबरदस्त दोहा है
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