(कामरूप छंद 9-7-10 की यति)
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सेवक कभी थे अब ठगें ये नाम ’नेता’ तंज !
भोली प्रजा की भावना से खेलते शतरंज !!
हर चाल इनकी स्वार्थ प्रेरित ताकि पायें राज ।
पासा चलें हर सोच कर ये हाथ आये ताज ॥
झाड़ू घड़ी गज सूर्य पत्ते कमल सैकिल हाथ..
सबके अलग हैं चिह्न लेकिन लूट के दम साथ ॥
व्यवहार में हैं छल-कपट पर ये बनें मासूम ।
सेवा कहाँ की ? शुद्ध धंधा ! है हमें मालूम ॥
दायित्व पालन की जरूरत देश को दिन-रात ।
ऐसे समय में कर रहे हैं गालियों में बात ॥
हर गाँव-सूबे लोग ऊबे किन्तु हो मतदान ।
जनता सजग है खूब लेगी ईवियम पर तान !!
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--सौरभ
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(मौलिक और अप्रकाशित)
Comment
भाव, प्रवाह, संदेश सब कुछ उत्कृष्ट! आपकी लेखनी को हार्दिक नमन आदरणीय सौरभ जी!
वाह बहुत ही मनोहारी , यथार्थपरक एवं सामयिक छंद .. दायित्व पालन की जरूरत देश को दिन-रात ।
ऐसे समय में कर रहे हैं गालियों में बात ॥... बहुत बढियां
वो दिन दूर नहीं जब हम फिर से गुलाम हो जायेंगे ..और इस बार की गुलामी सब कुछ बर्बाद कर देगी .. हमारा अस्तित्व ही ..
कामरूप छंद पर आधारित मनोहारी चुनावी छंद . आदरणीय ढेरो सादर बधाई स्वीकार करें.
बहुत खूब , सामयिक रचना । बहुत बधाई आपको आ0 सौरभ जी ।
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