किसी मासूम की बेचारगी आवाज़ देती है
मुझे मजबूर होटों की हँसी आवाज़ देती है
कोई हंगामा कर डाले न मेरी लफ्ज़े-ख़ामोशी
मेरी बहनों की मुझको बेबसी आवाज़ देती है
तुम्हारे वास्ते वो रेत का ज़रिया सही, लेकिन
कभी जाकर सुनो, कैसी नदी आवाज़ देती है
मेरे हमराह चलकर ग़म के सहरा में तू क्यों तड़पे
तुझे ऐ ज़िन्दगी, तेरी ख़ुशी आवाज़ देती है
मैंने क़िस्मत बना डाली है अपनी बदनसीबी को
मगर, तुमको तुम्हारी ज़िन्दगी आवाज़ देती है
"मौलिक व अप्रकाशित"
Comment
तुम्हारे वास्ते वो रेत का ज़रिया सही, लेकिन
कभी जाकर सुनो, कैसी नदी आवाज़ देती है...
इस शेर ने चौंका दिया, भाईजी.. बार-बार बहुत दाद कुबूल फ़रमायें.
आदरणीय सुशील भाई , बहुर खूब सूरत गज़ल कही है आपकओ हार्दिक बधाइयाँ ॥ मैने को आपने 12 लिया है क्या ये सही है ?
मेरे हमराह चलकर ग़म के सहरा में तू क्यों तड़पे
तुझे ऐ ज़िन्दगी, तेरी ख़ुशी आवाज़ देती है...दूसरों को सुखी देखने का अद्भुत सन्देश ..हर शेर शानदार है मेरी तरफ से सादर बधाई सादर
तुम्हारे वास्ते वो रेत का ज़रिया सही, लेकिन
कभी जाकर सुनो, कैसी नदी आवाज़ देती है...बहुत उम्दा बात कही आदरणीय सुशील जी ...बधाई ।
मैंने क़िस्मत बना डाली है अपनी बदनसीबी को
मगर, तुमको तुम्हारी ज़िन्दगी आवाज़ देती है............वाह! बहुत खूब,
दिली बधाई आदरणीय शुशील जी
तुम्हारे वास्ते वो रेत का ज़रिया सही, लेकिन
कभी जाकर सुनो, कैसी नदी आवाज़ देती है
इस अश'आर के लिए खास तौर से दाद..............वाह !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
आदरणीय सुशील सर खूबसूरत अशआर से सजी ग़ज़ल के लिये दिली मुबारकबाद कुबूल करें
मेरे हमराह चलकर ग़म के सहरा में तू क्यों तड़पे
तुझे ऐ ज़िन्दगी, तेरी ख़ुशी आवाज़ देती है......बहुत सुंदर. आपको हार्दिक बधाई.
तुमको तुम्हारी जिन्दगी आवाज़ देती है
बहुत खूब i
bahut sundar ghazal ,sabhi ashaar prabhavit karte hain dili daad kaboolen
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