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हमारी बात उन्हें इतनी नागवार लगी
गुलों की बात छिड़ी और उनको खार लगी
बहुत संभाल के हमने रखे थे पाँव मगर
जहां थे जख्म वहीं चोट बार-बार लगी
कदम कदम पे हिदायत मिली सफर में हमें
कदम कदम पे हमें ज़िंदगी उधार लगी
नहीं थी कद्र कभी मेरी हसरतों की उसे
ये और बात कि अब वो भी बेकरार लगी
मदद का हाथ नहीं एक भी उठा था मगर
अजीब दौर कि बस भीड़ बेशुमार लगी
संजू शब्दिता मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आदरणीय धर्मेंद्र जी आपका हार्दिक आभार
कदम कदम पे हिदायत मिली सफर में हमें
कदम कदम पे हमें ज़िंदगी उधार लगी..लाजबाब
मदद का हाथ नहीं एक भी उठा था मगर
अजीब दौर कि बस भीड़ बेशुमार लगी....बेहतरीन रचना इस बेहतरीन रचना पर मेरी तरफ से हार्दिक बधाई स्वीकार करें सादर
ये और बात थी कि वो भी बेकरार लगी --यह तो कोई पुरुष लिख सकता है i आपके जेहन में यह ख्याल कैसे आया i जो भी हो गजल अच्छी है i बधाई i
बहुत संभाल के हमने रखे थे पाँव मगर
जहां थे जख्म वहीं चोट बार-बार लगी
सुंदर गजल हेतु बधाई स्वीकारें,,,,,,,,,,,,,बहुत खूब....
बहुत संभाल के हमने रखे थे पाँव मगर
जहां थे जख्म वहीं चोट बार-बार लगी.……………… आआआआआह गज़ब के अशआर .... जितनी भी तारीफ़ करें वो कम ही होगी .... बहरहाल इस शानदार ग़ज़ल के लिए आप निश्चित रूप से बधाई की हकदार हैं … दिली दाद कबूल फ़र्माईन आदरणीय संजू जी
हमारी बात उन्हें इतनी नागवार लगी
गुलों की बात छिड़ी और उनको खार लगी.....बहुत सुंदर
बहुत खूब ! इस सुंदर गजल हेतु बधाई स्वीकारें । |
बहुत खूब संजू जी बेहद असरदार ग़ज़ल कही है आपने
बहुत संभाल के हमने रखे थे पाँव मगर
जहां थे जख्म वहीं चोट बार-बार लगी --------- बहुत खूब आदरणीया , अनेकों बधाइयाँ , गज़ल के लिये और इस शे र के लिये ॥
बहुत खूबसूरत ग़ज़ल! आपको बहुत-बहुत बधाई!
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