जब जब जागी उम्मीदें ,
अरमानों ने पसारे पंख.
देखा बहेलियों का झुंड,
आसपास ही मंडराते हुए,
समेट लिया खुद को
झुरमुटों के पीछे.
अँधेरा ही भाग्य बना रहा.
हमारे ही लोग,
हमारे जैसे शक्लों वाले,
हमारे ही जैसे विश्वास वाले,
करते रहे बहेलियों का गुण गान.
उन्हें बताते रहे हमारी कमजोरियों के बारे में
बहेलिये भी हराए जा सकते हैं.
कभी सोचा ही नहीं .
उनकी शक्ति प्रतीत होती थी अमोघ.
जंगल में लगी आग में देखा
बहेलिये को भयाक्रांत
जान बचाकर भागते हुए
बहेलिया भी डरता है,
वह हराया जा सकता है..
उठा लिया एक लुआठी.
सबने कहा यह गलत है..
बहेलिये को डराना है अनैतिक.
हम हैं इतने ज्यादा , बहेलिये इतने कम
पर धीरे धीरे जमा होने लगे सभी
बन गयी एक लम्बी श्रृंखला लुआठियों की
भयमुक्त जीना
अपनी संततियों के सुखद भविष्य देखना
अच्छा लगता है .
अच्छे दिन आ गए.
….
नीरज कुमार नीर
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय श्याम नारायण वेरमा साहब हार्दिक आभार..
आदरणीय गोपाल नारायण श्रीवास्तव साहब सराहना एवं प्रोत्साहन के लिए हार्दिक धन्यवाद ..
अच्छे दिन आ गये :) :)
सटीक अभिव्यकि की है आपने।
हार्दिकशुभकामनायें आपको।
साद्र
अच्छे दिनों की इन्तजार तो सभी को रहती है ...अच्छी रचना ..बधाई आपको
आदरणीय नीरज भाई , सुन्दर , प्रेरक , उत्साह वर्धक रचना के लिये आपको बधाइयाँ ।
अच्छी रचना है! अच्छे दिनों की उम्मीद सबको है! आपको हार्दिक बधाई!
अच्छा लगता है .
अच्छे दिन आ गए....................///
बहुत सुन्दर ,, बधाई
जंगल में लगी आग में देखा
बहेलिये को भयाक्रांत
जान बचाकर भागते हुए
बहेलिया भी डरता है,
वह हराया जा सकता है..
समयानुकूल उत्तम प्रस्तुति!
नीरज जी ..बहुत ही सुंदर बिचार ..वाकई कमाल की रचना ..नव चेतना का संचार करती इस रचना के लिए सादर बधाई
जंगल में लगी आग में देखा
बहेलिये को भयाक्रांत
जान बचाकर भागते हुए
बहेलिया भी डरता है,
वह हराया जा सकता है..
सुन्दर रचना और अच्छा सन्देश ...जोश हो धैर्य हो तो कुछ भी हो सकता है
भ्रमर ५
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