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छप्पय छंद
बेटी होना पाप, त्रास में जीवन सारा ।
जन्म पूर्व ही घात, उसे कितनों ने मारा ।।
कंपित होती सांस, वायु है दूषित सारी ।
छेड़ छाड़ हर पाद, नगर गांव बलात्कारी ।।
गली गली में भेडि़या, नोचें बेटी मांस को ।
जीवित होकर लाश हैं, बेटी सह  इस त्रास को ।।
.................
मौलिक अप्रकाशित

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 9, 2014 at 11:23pm

बढिया !

इस अभ्यास के लिए हार्दिक धन्यवाद आदरणीय.

गांव घर है बलात्कारी .. इस चरण को संयत करन होगा.

Comment by vijay nikore on June 8, 2014 at 11:22am

इस रचना की भावनाएँ मन को छू गईं। बधाई, आदरणीय।

Comment by Dr Ashutosh Mishra on June 7, 2014 at 3:18pm

आदरणीय रमेश जी ..वर्तमान परिप्रेक्ष्य में लिखी गयी सटीक और सुंदर रचना ,,,हार्दिक बधाई के साथ सादर 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on June 7, 2014 at 2:35pm

आदरणीय रमेश कुमार चौहान जी 

सामयिक परिपेक्ष में बहुत मर्मस्पर्शी प्रस्तुति दी है आपने

आपको छंदों पर रचनाकर्म करते देखना बहुत सुकून देता है..बहुत सुन्दर प्रयास हुआ है छप्पय छंद पर..मेरी हार्दिक बधाई स्वीकारिये 

छंद की चौथी पंक्ति में मात्रिकता एक बार पुनः देख लें 

यदि अंतिम पंक्ति को ऐसा करें तो? "बिटिया ज़िंदा लाश सी, जीती है इस त्रास को" 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 7, 2014 at 12:06pm

प्रिय चौहान जी

आपका कथन सही है  i  आपने  सही निर्वाह किया है i यहाँ तक कित् ग्यारहवी मात्रा भी लघु रखी है i आपको  धन्यवाद i

सादर i

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on June 7, 2014 at 9:33am

बहुत मार्मिक रचना, बधाई आदरणीय रमेश जी

Comment by रमेश कुमार चौहान on June 6, 2014 at 10:43pm

आदरणीय narendrasinh chauhan, Sushil Sarna, Sushil Sarna, डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव, शिज्जु शकूरजी एवं आदरणीयाकुतीदी एवं राजेशदी रचना को मान देने के लिये सादर आभार,
       
आदरणीयडॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तवजी आपके सुझााव एवं मार्गदर्श के लिये सादर धन्यवाद । छप्पय छंद एक रोला एवं एक उल्लाला अथवा एक उल्लाल छंद का मेल होता है । 15, 13 उल्लाल 13,13 उल्लाला होता है । आदरणीय सौरभजी द्वाराभी आगामी चित्र से काव्य तक लिये दिये गये उल्लाला छंद में दी गई है । सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on June 6, 2014 at 7:45pm

आदरणीय रमेश भाई अच्छी भावाभिव्यक्ति है 

Comment by Shyam Narain Verma on June 6, 2014 at 4:12pm
अच्छी प्रस्तुति आदरणीय ,बधाई .................
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 6, 2014 at 12:31pm

प्रिय चौहान जी

छप्पय  के प्रथम चार चरण रोला और बाद के दो चरण उल्लाला के होते है  i  रोला में  'गाँव  घर है बलात्कारी' में 13 के स्थान पर 14

मात्राये  है  i यहाँ तक तो फिर ठीक है पर आगे आपने 13,13 पर यति की है , जबकि उल्लाला में 15, 13 पर यति होतीहै  i छबीस मात्राओ वाले छंद भी होते है जैसे- शंकर ,विष्णुपद, कामरूप, झूलना,गीतिक एवं गीता i पर इनमे भी 13,13 पर यति किसी में नहीं होती i आप ओ बी ओ में ही छंद योजना कालम में सौरभ जी के इन छन्दो  पर लेख पढ़े i  इससे से आपके छंद का संगठन शुद्ध होगा और उसकी पठनीयता एवं सम्प्रेषण  शक्ति बढ़ेगी i  सादर i आशा है आप मेरी बातो को अन्यथा नहीं लेंगे i

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