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आभार आदरणीय श्री आशीष जी ,श्री विजय जी आपके शब्द मेरे लिए प्रेरक हैं , दिल से शुक्रिया आदरणीय !!
सादर प्रणाम आदरणीय श्री !! आपका आशीष मार्गदर्शन साधिकार चाहिए !!
इस अच्छी गज़ल के लिए बधाई, आदरणीय अभिनव जी।
वाह ! ये अंदाज़ और ये तेवर ! बहुत खूब !
ग़ज़लों को सशक्त स्वर तो मिलता ही रहा है, आपने तो आधिकारिक स्वर भी दे दिया. चूँकि ये कोशिश कइयों की भावनाओं को स्वर देती है तो बिला शक कामयाब है.
सार्थक प्रयास को मेरी शुभकामनाएँ और बधाइयाँ, भाईजी.
लड़का लूला या लंगड़ा हुआ गूंगा बहरा या काला हुआ ,
मुझसे पूछा बताया नहीं सबको मैं ही दिखा ली गयी |.....
शायद पहली बार इतना कठोर तंज में समाज के काले चेहरे का आपने पर्दाफाश किया .. दहला देने वाली घटनाएं आँखों के सामने जैसे गुजरने लगी ... आपकी कलम को नमन .. यादगार ग़ज़ल के लिए ढेरों बधाईयाँ सादर
द्रौपदी नोच डाली गयी घर से सीता निकाली गयी |
आज या कल के उस दौर में मैं कहाँ कब संभाली गयी |
बहुत खूब तञ्ज किया है आप् ने स मा ज की अव्यवस्था पर
हार्दिक शुभकाम्नाये
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