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एक लघु वार्ता --- डॉ ० विजय शंकर

प्रिय मित्रों ,
मैं इस सम्मानित मंच के माध्यम से आप सभी से कुछ बातें शेयर करना चाहता हूँ , आज लाइव महोत्सव का जो विषय है, ये बातें कहीं न कहीं उस से जुडी हुई हैं . थोड़ा देखें दुनिया में और लोगों का नज़रिया उन बातों पर जो हम सभी को घेरे रहती हैं . गत तीन-चार वर्षों से वर्ष में कुछ समय मेरा अमेरिका में रहना होता है , इस प्रवास में बहुत कुछ देखने को मिलता है। कुछ इत्मीनान से , कुछ सोच समझ के साथ। जैसे , स्वतंत्रता की देवी ( statue of liberty ) की मूर्ति वाले इस विशाल देश में लोग वास्तव में स्वतंत्रता का मूल्य और अर्थ समझते हैं, हर व्यक्ति आपको स्वतंत्रता देता मिलेगा , होटल में , सड़क पर , मॉल में , सभी जगह। तुलना न करें , हमने अभी स्वतंत्रता का यह पहलु छुआ ही नहीं कि यह दूसरों को देने की चीज है , न कि सबसे ले लेने की। यहाँ किसी भी सार्वजनिक स्थल पर किसी की तरफ देखना तो जैसे चलन में है ही नहीं , घूरना तो जैसे लोग जानते भी नहीं कि यह भी कोई सामाजिकता होती है। सामान्यत: लोग कार से ही चलते हैं , लेकिन कार चेज , ड्राविंग में करतब दिखाना जैसी चीजें शून्य हैं , हॉर्न बजाने की संस्कृति है ही नहीं , अपरिहार्य परिस्थितियों को छोड़ कर। वैसे यह सब चीजें यूरोप और लैटिन अमेरिका में भी हैं ,हमने देखी हैं। सार्वजनिक जीवन में कहीं भी वी. आई. पी. संस्कृति जैसी कोई चीज दिखाई नहीं देती है.
कार्य स्थल पर अपनी सीट छोड़ने की कला लोगों को आती ही नहीं , फ़ोन पर रहना , आपस में बातचीत करना , दिखाई नहीं देता है। ऐसा लगता है अनावश्यक बाते करना भी लोगों को नहीं आता है। जीवन में एक गति है , थोड़ी तेज गति है , स्त्रियां भी तेज गति से चलती हैं , विशेष -कर कामकाजी महिलायें . लोगों में काम के प्रति समर्पण है , जोर से बात करना , विवाद करना , देर हो गयी अत: अब बाहर नहीं निकालना , जैसी कोई चीज नहीं है। बातचीत हमेशा हाय के अभिवादन से मुस्कराहट के साथ शुरू होती है . कार्यक्षेत्र में बातचीत महिलायें ही शुरू करती हैं , हमेशा अभिवादन और मुस्कराहट के साथ .
डॉलर की करेंसी सभी एक साइज , रंग , रूप की होती है , केवल उस पर १ , ५, १०, २०, ५०, १००,अंकित रहता है . क्या हम यह कर सकते है ? बिलकुल कर सकते हैं , लेकिन पहले पूरे देश को साक्षर बनाना होगा , नहीं तो अनपढ़ तो पांच की जगह दस का नोट दे जायेगा .
सबसे बड़ी बात हमारे यहां अजन्में शिशु का लिंग परीक्षण करना , कराना अपराध है , कारण हम सभी जानते हैं ,यू एस ए में हर होने वाले माता - पिता को काफी पहले से यह बता दिया जाता है कि बेटा होगा या बेटी . लोग जन्म से पूर्व आयोजित होने वाले बेबी शॉवर जैसे आयोजन बेटे या बेटी जो भी हो उसके नाम पर करते हैं। यहां बेबी शॉवर वैसा ही आयोजन होता है जैसे हमारे यहां गोद भराई की रस्म होती है , मेहमान पूर्व जानकारी के हिसाब से पुत्र या पुत्री , जो हो , उसके लिए वस्त्र या अन्य उपहार लाते हैं।
विवेचना की कोई जरुरत नहीं। सिर्फ चिंतन करें , बहुत से अर्थ छिपे हैं इन बातों में।

मौलिक एवं अप्रकाशित
-----...------
डॉ ० विजय शंकर

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Comment by Dr. Vijai Shanker on June 15, 2014 at 7:21pm
आदरणीय राजेश कुमारी जी ,
आपकी टिप्पणी सटीक है , बिलकुल सहज और स्वाभाविक . आभार. तुलना स्वभाविक है और अच्छी भी , विविधिता हमें आकर्षित तो करती ही है , साथ में , बहुत कुछ नया , अलग जानने का अवसर भी देती है . जिज्ञासा स्वाभाविक है , तुलना तो हम अपने देश के अंदर की विविधता से भी करते रहते हैं , उससे तो हम मुक्त हैं नहीं , होना भी नहीं चाहिए . जहां तक किसी से कुछ सीखने का प्रश्न है तो हमारी अपनी संस्कृति में जीवन की कौन सी विधा है , जीवन के कौन से मूल्य हैं, जिनकी भरमार नहीं है . आवश्यकता संभवत: केवल इच्छा शक्ति की है . अवसरवादिता की मानसिकता को तजने की है . पर हमारे यहां परिवर्तन सक्रियता का परिणाम है ही नहीं , वह तो एक विशिष्ट प्रकार की निष्क्रियता और उदासीनता का परिणाम है , इसीलिये वह हमारी अपेक्षाओं पर खरा नहीं उतरता है . वैसे भी हम फैसले संकट कालीन परिस्थितियों से मुक्त होने के लिए ही करते हैं और फिर संकट काल गुजर जाने के बाद अपने ही निर्णयों से अचंभित होते रहते हैं . दुखद तो वह इसलिए भी होता है क्योंकि उन निर्णयों को अगली पीढ़ियों को भी तो स्वीकार करना पड़ता है. इसीलिये हम प्रायःसंक्रमण में ही जीवन जी लेते हैं और अच्छे की प्रतीक्षा करते ही रह जाते हैं.
आबादी , शायद मानव- शक्ति भी हो सकती है , बस एक इच्छा की आवश्यकता है , निस्वार्थ इच्छा .
धन्यवाद ,
सादर.

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 15, 2014 at 5:59pm

आ० विजय शंकर जी हम लोग जब विदेश में होते हैं तो हर चीज में अपने देश से तुलना करते हैं ये एक मानव स्वभाव के अनुरूप होता है और होना भी चाहिए इसी से हमे अपनी कमियां और अपनी अच्छाईयां पता चलती हैं हम दुसरे देश की सुख सुविधाओं से चकित रह जाते हैं हम यह भी देखते हैं कि हमारे देश में कितनी पोपुलेशन है जो दिनोदिन बढ़ रही है जो विदेशों में नहीं है यही मुख्य कारण है की हम कई बातों में पीछे हैं और अशिक्षा उस पर एक ग्रहण की तरह है हमे अपने देश में इन सुधारों की आवश्यकता है इसमें कोई दो राय नहीं है ,यदि ये सुधार हो जाएँ तो हमारा देश सभी देशों में अग्रणी रहेगा| मुझे विशवास है कि यही आपके इस यात्रा वृतांत का उद्देश्य भी है |बहुत- बहुत बधाई आपको |  

Comment by Dr. Vijai Shanker on June 15, 2014 at 4:54pm
आदरणीय महिमा जी,
यात्रा-वृत्तांत पर आपका दृष्टिकोण सराहनीय है ,धन्यवाद . आपकी दृष्टि उसकी सार्थकता पर गयी यह बहुत प्रशंसनीय है , अन्यथा हम ही प्राय: बहुत सी अच्छाइयों को सिर्फ इसलिए अस्वीकार कर देते है कि वे किसी दूसरे में हैं , उसका पहनावा , पिज्जा , बर्गर तो हम अपना लेते हैं पर उनकी लगन , जीवन के मूल्यों के प्रति उसकी चेतना , संवेदनशीलता को देख कर भी हम वैदेशिक का लेबल लगा कर तिरस्कृत कर देते हैं , जब कि इन मूल्यों से अक्सर देश और काल का कोई सम्बन्ध होता ही नहीं है. हम स्कूल - कालेजों में सांस्कृतिक मूल्य पढ़ाते नहीं , पारवारिक स्वरूप और पारवारिक नजरिया हमारे यहां अभी भी संक्रमण काल से गुजर रहा है ,इसलिए वह इन मूल्यों की स्थापना में सहयोग देने में कुछ असमर्थ सा है , ऐसे में राजनेता , सिने-अभिनेता और समाज के तथाकथित ठेकेदार जीवन मूल्यों का निर्धारण और विश्लेषण करने लगते हैं , जबकि स्वयं उनके ही ये सारे मूल्य अवसरवादिता के कारण प्रतिक्षण टूटते और बदलते रहते है . हम वैचारिक शून्यता के ऐसे युग में हैं जहां पीढ़ियां खुद दुविधा में हैं कि क्या अपनाये क्या न अपनाये और क्या त्याग दें . हम अपने उच्च सांस्कृतिक मूल्य संजो नहीं रहे हैं और बहुत सी अच्छाइयों को विदेशी मान कर कर अपनाने में संकोच कर जाते हैं , जबकि किसी भी अच्छाई पर किसी की इकलौती विरासत नहीं होती है . बहत कुछ है जो प्रसंगत: प्रस्तुत करता रहूंगा . हाँ , एक निस्वार्थ - निस्पक्ष दृष्टिकोण अपेक्षित होगा उन्हें समझने के लिए , उन्हें अपनाना या न अपनाना तो अलग बात होगी . आपने एक अवसर दिया कुछ कहने और सोचने का , धन्यवाद .
सादर.
Comment by MAHIMA SHREE on June 15, 2014 at 3:46pm

आदरणीय विजय शंकर जी

आपने अपने अमेरिका यात्रावृतांत को शेयर किया इसके लिए आभारी / अच्छा लगा पढ़ कर की  वंहा के नागरिक अपने देश की उन्नति के लिए अपने कार्यभार को बहुत ही ईमानदारी से पूरा करते हैं वंहा का वर्क कल्चर काबिले तारीफ है इसमें कोई शक नहीं इस लिए आज वो विकसित और मजबूत है और विश्व में अपना दब दबा कायम रखे हुए है .. इस तुलना में आज हमारे यंहा कार्यभार को लेकर जो ढीलापन होता है उससे कोई भी अनजान नहीं है .. दूसरी बात आपने कहा आपने देखा लोग वंहा  स्वतंत्र होने का मायने समझाते है इससे भी इनकार नहीं किया जा सकता यंहा स्वतंत्र होने का मतलब  सरकारी चीजो का दुरूपयोग बस  और हमें ये दोनों बाते तो सीखनी ही चाहिए हमारे यंहा लोग पिज्जा बर्गर के पीछे तो पागल हो रहे हैं पर उनकी लगनशीलता और अपने देश के प्रति ईमानदारी अनुशासन का अनुकरण नहीं करते

छोटी सी वार्ता है पर आपने महत्वपूर्ण बिन्दुओ पर चर्चा की है .बहुत बढ़िया बधाई सादर

Comment by Dr. Vijai Shanker on June 15, 2014 at 9:53am
बहुत बहुत धन्यवाद आपकी सुदृष्टि के लिए . पर आपके इस वक्तव्य से कि " लाख बुराइयां हो पर अपना देश घर परिवार अपना ही होता है ...हमें गर्व है अपने देश पर पर थोड़ा अफ़सोस होता है कि ऐशो आराम और पैसे के पीछे भागते लोगो की इंसानियत मर गयी है " इससे मेरी वार्ता से क्या मतलब , मैने तो कुछ बिन्दुओं का उल्लेख मात्र किया है , मैंने वहां जा बसने की बात तो नहीं की है .
वैसे ऐशो आराम के जो तरीके हमने ईजाद कर लिए है ,गत कुछ दशकों में , वो दुनिया में शायद ही कहीं नहीं मिलेंगें . अगर अच्छे दिन आ गए तो सबसे पहले यही बदलेगा , बिना मेहनत के ऐशो आराम क्या , कुछ नहीं मिलेगा . रातों रात तकदीर सिर्फ मेहनतकश की बदलेगी .
अच्छी बातें तो कहीं से भी ली जा सकती हैं , आप अवश्य सहमत होगीं शायद .
टिप्पणी के लिए आभार .
सादर.
सेवा में ,
सुश्री सविता मिश्रा जी
Comment by savitamishra on June 15, 2014 at 9:04am

लाख बुराइया हो पर अपना देश घर परिवार अपना ही होता है ...हमें गर्व है अपने देश पर पर थोड़ा अफ़सोस होता है कि ऐशो आराम और पैसे के पीछे भागते लोगो की इंसानियत मर गयी है ...बहुत बढ़िया सच लिखा आपने इसमें कोई शक नहीं ..सादर नमस्ते

Comment by Dr. Vijai Shanker on June 14, 2014 at 6:33pm
आदरणीय गोपाल नारायण जी ,
आपने मेरा विवरण पढ़ा , इसके लिए आपको धन्यवाद . आपकी देश प्रेम और हमारी संस्कृति की प्रसंशात्मक बाते सुन कर बहुत अच्छा लगा . यह मेरा देश प्रेम ही है जो मुझे इस ओर सोचने को बाध्य करता रहता है , हम किसी के समकक्ष जाने की सोचते ही नहीं , हम तो अतीत की तरह फिरविश्व में सबसे आगे होने के लिए चिंतित हैं . मैं चाह कर भी सिर्फ यह सोच कर खुश हो नहीं पाता कि हमारा अतीत बड़ा गौरवशाली था , हमारी प्राचीन संस्कृति बड़ी गौरवशाली है , अपने धरोहरों पर मान करना अच्छा है पर उनके संवर्धन का प्रयास करना उससे भी अच्छा है . पाचीन भारतीय संस्कृति में मेरा इतना अटूट विश्वास है कि मैं यही मानता हूँ कि जीवन की हर समस्यामों का समाधान सिर्फ और सिर्फ भारतीय संस्कृति में है . पर उसके लिए निरंतर जागरूकता भी जरुरी है .
मैं आप के विचारों से प्रभावित हूँ , उन्होंने मेरमनोबल बढ़ाया है , मई आपका आभारी भी हूँ.
सादर .
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 14, 2014 at 1:54pm

आदरनीय  बंधू

मानता हूँ कि कई मायने में पाश्चात्य देश  हमसे बेहतर हो सकते है  i परन्तु अपना देश अपना हे होता है  i भारतीय  संस्कृति में भी बहुत कुछ ऐसा है जिस पर हम गर्व कर सकते है i यूनानी  दर्शन के साथ  भारत का ही दर्शन है जिसका विश्व लोहा मानता है और हमारे देश में है संवेदना  जिस पर हम, मरते मिटते रहे है i मेरे बहनोई विदेश सेवा में रहे है उनका  बेटा और एक बेटी अमेरिका में हे बस गए है  पर जीजा श्री ने सेवा निवृति के बाद भारत में ही रहना पसंद किया i  यह सच है की वहां भौतिक सुविधाए अधिक है  पर अपनों और अपने देश का अभाव उन्हें सालता है -

       जिसको न निज गौरव तथा निज देश का अभिमान है

      वह नर नहीं है ----------

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