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आ० विजय शंकर जी हम लोग जब विदेश में होते हैं तो हर चीज में अपने देश से तुलना करते हैं ये एक मानव स्वभाव के अनुरूप होता है और होना भी चाहिए इसी से हमे अपनी कमियां और अपनी अच्छाईयां पता चलती हैं हम दुसरे देश की सुख सुविधाओं से चकित रह जाते हैं हम यह भी देखते हैं कि हमारे देश में कितनी पोपुलेशन है जो दिनोदिन बढ़ रही है जो विदेशों में नहीं है यही मुख्य कारण है की हम कई बातों में पीछे हैं और अशिक्षा उस पर एक ग्रहण की तरह है हमे अपने देश में इन सुधारों की आवश्यकता है इसमें कोई दो राय नहीं है ,यदि ये सुधार हो जाएँ तो हमारा देश सभी देशों में अग्रणी रहेगा| मुझे विशवास है कि यही आपके इस यात्रा वृतांत का उद्देश्य भी है |बहुत- बहुत बधाई आपको |
आदरणीय विजय शंकर जी
आपने अपने अमेरिका यात्रावृतांत को शेयर किया इसके लिए आभारी / अच्छा लगा पढ़ कर की वंहा के नागरिक अपने देश की उन्नति के लिए अपने कार्यभार को बहुत ही ईमानदारी से पूरा करते हैं वंहा का वर्क कल्चर काबिले तारीफ है इसमें कोई शक नहीं इस लिए आज वो विकसित और मजबूत है और विश्व में अपना दब दबा कायम रखे हुए है .. इस तुलना में आज हमारे यंहा कार्यभार को लेकर जो ढीलापन होता है उससे कोई भी अनजान नहीं है .. दूसरी बात आपने कहा आपने देखा लोग वंहा स्वतंत्र होने का मायने समझाते है इससे भी इनकार नहीं किया जा सकता यंहा स्वतंत्र होने का मतलब सरकारी चीजो का दुरूपयोग बस और हमें ये दोनों बाते तो सीखनी ही चाहिए हमारे यंहा लोग पिज्जा बर्गर के पीछे तो पागल हो रहे हैं पर उनकी लगनशीलता और अपने देश के प्रति ईमानदारी अनुशासन का अनुकरण नहीं करते
छोटी सी वार्ता है पर आपने महत्वपूर्ण बिन्दुओ पर चर्चा की है .बहुत बढ़िया बधाई सादर
लाख बुराइया हो पर अपना देश घर परिवार अपना ही होता है ...हमें गर्व है अपने देश पर पर थोड़ा अफ़सोस होता है कि ऐशो आराम और पैसे के पीछे भागते लोगो की इंसानियत मर गयी है ...बहुत बढ़िया सच लिखा आपने इसमें कोई शक नहीं ..सादर नमस्ते
आदरनीय बंधू
मानता हूँ कि कई मायने में पाश्चात्य देश हमसे बेहतर हो सकते है i परन्तु अपना देश अपना हे होता है i भारतीय संस्कृति में भी बहुत कुछ ऐसा है जिस पर हम गर्व कर सकते है i यूनानी दर्शन के साथ भारत का ही दर्शन है जिसका विश्व लोहा मानता है और हमारे देश में है संवेदना जिस पर हम, मरते मिटते रहे है i मेरे बहनोई विदेश सेवा में रहे है उनका बेटा और एक बेटी अमेरिका में हे बस गए है पर जीजा श्री ने सेवा निवृति के बाद भारत में ही रहना पसंद किया i यह सच है की वहां भौतिक सुविधाए अधिक है पर अपनों और अपने देश का अभाव उन्हें सालता है -
जिसको न निज गौरव तथा निज देश का अभिमान है
वह नर नहीं है ----------
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