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हमें माझी की आदत है उसी के ही सहारे हैं
डुबो दे बीच में चाहे, वो चाहे तो किनारे हैं
मिटाने को हमें अब जा मिला घड़ियाल से माझी
कि साज़िश के निशाने पर ही हमने दिन गुजारे हैं
चमकती चीज ही मिलती रही सौगात में हमको
समझ बैठे ये धोखे से कि किस्मत में सितारे हैं
सियासत जो हमारे घर में ही होने लगी है अब
तभी हर बात में कहने लगे वो हम तुम्हारे हैं
अदावत घर में ही होने लगे तो क्या करें साहिब
बताएं क्या कि हर सूरत हमी अपनों से हारे हैं
संजू शब्दिता मौलिक व अप्रकाशित
Comment
बयाँ की तुमने जो बातें जिगर में हम उतारे हैं
बुलंदी पर तुम्हारी इस गजल के तो सितारे हैं
करें क्या और तारीफें फकत इतना ही कहना अब
हुए हैं आज सबके ही तुम्हें जो शब्द प्यारे हैं
बहुत बहुत बधाई आ० संजू जी .
बहुत सुंदर गज़ल ...बार बार पढ़ने को जी चाहता है.सादर
वाह! शानदार गजल के लिए आपको हार्दिक बधाई प्रिय संजु जी
सियासत जो हमारे घर में ही होने लगी है अब
तभी हर बात में कहने लगे वो हम तुम्हारे हैं
अदावत घर में ही होने लगे तो क्या करें साहिब
बताएं क्या कि हर सूरत हमी अपनों से हारे हैं.... क्या बात है ... बहुत बढिया आदरणीया संजू जी हार्दिक बधाई स्वीकार करे
सुन्दर ग़ज़ल हुई................सुंदर ग़ज़ल
ग़ज़ल पर कुछ कहना बाद में ...अभी केवल एक शब्द पर बात करनी है
खिलाफ़त
उर्दू के राइज़ (सरल) अल्फ़ाज़ के इस्तेमाल में कभी कभी हम चूक जाते हैं और अर्थ का अनर्थ हो जाता है, अधिक समय नहीं है इसलिए संक्षेप में
खलीफा खिलाफत खिलाफ मुखालफत ये सब लफ्ज़ खल्फ़ धातु से बने हैं
अब इनका अर्थ देखिये
खलीफा - वारिस (राजा के अर्थ में भी प्रयोग होता है)
खिलाफ़त - विरासत, उत्तराधिकार (राजा द्वारा घोषित उत्तराधिकारी) उदाहरण - हुमायूं ने बाबर से खिलाफत पाई
खिलाफ - विरोध (भाव)
मुखालफत - विरोध (क्रिया), विरोध प्रदर्शन
अब आप अपने शेर में खिलाफत अर्थ के प्रयोग पर विचार कर लें
सादर
आहाहा! सुबहानअल्ला! क्या गज़ल लिखी है आपने!
अदावत घर में ही होने लगे तो क्या करें साहिब
बताएं क्या कि हर सूरत हमी अपनों से हारे हैं .... सीधे दिल तक जाता हुआ शेअर! वाह!
ढेर सारी बधाई प्रिय संजु जी!
हमें माझी की आदत है उसी के ही सहारे हैं
डुबो दे बीच में चाहे, वो चाहे तो किनारे हैं-----वाह्ह शानदार मतला
सभी अशआर बहुत कुछ बोल रहे हैं ,सुन्दर ग़ज़ल हुई
बहुत- बहुत बधाई प्रिय संजू जी
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