For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल -कि साज़िश के निशाने पर ही हमने दिन गुजारे हैं

 १२२२      १२२२     १२२२       १२२२

हमें माझी की आदत है उसी के ही सहारे हैं

डुबो दे बीच में चाहे, वो चाहे तो किनारे हैं

मिटाने को हमें अब जा मिला घड़ियाल से माझी

कि साज़िश के निशाने पर ही हमने दिन गुजारे हैं

चमकती चीज ही मिलती रही सौगात में हमको

समझ बैठे ये धोखे से कि किस्मत में सितारे हैं

सियासत जो हमारे घर में ही होने लगी है अब

तभी हर बात में कहने लगे वो  हम तुम्हारे हैं

अदावत घर में ही होने लगे तो क्या करें साहिब

बताएं क्या कि हर सूरत हमी अपनों से हारे हैं

संजू शब्दिता  मौलिक व अप्रकाशित

Views: 1041

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 20, 2014 at 10:01am

बयाँ की तुमने जो बातें जिगर में हम उतारे हैं
बुलंदी पर तुम्हारी इस गजल के तो सितारे हैं
करें क्या और तारीफें फकत इतना ही कहना अब
हुए हैं आज सबके ही तुम्हें जो शब्द प्यारे हैं

बहुत बहुत बधाई आ० संजू जी .

Comment by coontee mukerji on June 19, 2014 at 11:54pm

बहुत सुंदर गज़ल ...बार बार पढ़ने को जी चाहता है.सादर

Comment by कल्पना रामानी on June 19, 2014 at 10:32pm

वाह! शानदार गजल के लिए आपको हार्दिक बधाई प्रिय संजु जी

Comment by MAHIMA SHREE on June 19, 2014 at 8:07pm

सियासत जो हमारे घर में ही होने लगी है अब

तभी हर बात में कहने लगे वो  हम तुम्हारे हैं

अदावत घर में ही होने लगे तो क्या करें साहिब

बताएं क्या कि हर सूरत हमी अपनों से हारे हैं.... क्या बात है ... बहुत बढिया आदरणीया संजू जी हार्दिक बधाई स्वीकार करे

Comment by gumnaam pithoragarhi on June 19, 2014 at 7:35pm

सुन्दर ग़ज़ल हुई................सुंदर ग़ज़ल

Comment by वीनस केसरी on June 18, 2014 at 6:54pm

ग़ज़ल पर कुछ कहना बाद में ...अभी केवल एक शब्द पर बात करनी है

खिलाफ़त
उर्दू के राइज़ (सरल) अल्फ़ाज़ के इस्तेमाल में कभी कभी हम चूक जाते हैं और अर्थ का अनर्थ हो जाता है, अधिक समय नहीं है इसलिए संक्षेप में

खलीफा खिलाफत खिलाफ मुखालफत ये सब लफ्ज़ खल्फ़ धातु से बने हैं
अब इनका अर्थ देखिये
खलीफा - वारिस (राजा के अर्थ में भी प्रयोग होता है)
खिलाफ़त - विरासत, उत्तराधिकार (राजा द्वारा घोषित उत्तराधिकारी) उदाहरण - हुमायूं ने बाबर से खिलाफत पाई
खिलाफ - विरोध (भाव)
मुखालफत - विरोध (क्रिया), विरोध प्रदर्शन 

अब आप अपने शेर में खिलाफत अर्थ के प्रयोग पर विचार कर लें
सादर

Comment by Abhinav Arun on June 18, 2014 at 11:42am
चमकती चीज ही मिलती रही सौगात में हमको

समझ बैठे ये धोखे से कि किस्मत में सितारे हैं...बेहद खूबसूरत ग़ज़ल के लिए बधाई शब्दिता जी !!
Comment by Dr. Vijai Shanker on June 18, 2014 at 6:24am
हौसले फिर भी इतने हैं कि
हम कहाँ किसी से हारे हैं ।
बहत अच्छी पंक्तियाँ है , बधाई .
सादर .
Comment by वेदिका on June 18, 2014 at 12:59am

आहाहा! सुबहानअल्ला! क्या गज़ल लिखी है आपने! 

अदावत घर में ही होने लगे तो क्या करें साहिब

बताएं क्या कि हर सूरत हमी अपनों से हारे हैं .... सीधे दिल तक जाता हुआ शेअर! वाह!

ढेर सारी बधाई प्रिय संजु जी!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 17, 2014 at 8:53pm

हमें माझी की आदत है उसी के ही सहारे हैं

डुबो दे बीच में चाहे, वो चाहे तो किनारे हैं-----वाह्ह शानदार मतला 

सभी अशआर बहुत कुछ बोल रहे हैं ,सुन्दर ग़ज़ल हुई 

बहुत- बहुत बधाई प्रिय संजू जी 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service