दिनांक 22 जून की शाम इलाहाबाद के अदबघर, करेली में अंजुमन के सौजन्य से आयोजित तरही-मुशायरे में मेरी प्रस्तुति तथा कुछ अन्य शेर --
2122 2122 212
यदि सुशासित देश-सूबा चाहिये..
शाह क्या जल्लाद होना चाहिये !?
फ़ुरसतों का दौर कैसा चाहिये.. ?
वक्त अलसाया.. उनींदा चाहिये !
रात है, आवारग़ी है.. खूब है..
कब कहा हमने.. ठिकाना चाहिये ?
इश्क़ है गर डूबना.. तो पास जा..
डूबने वालों को दरया चाहिये ॥
नाम इक उड़ता हुआ फिर आ गया
होंठ पर फूलों का गमला चाहिये.. !!
वक़्त क्या.. कर दूँ निछावर ज़िन्दग़ी
पर तुम्हें तो सिर्फ़ कंधा चाहिये !
धूप से हलकान सूरज भी दिखा
अब उसे लहजा बदलना चाहिये ॥
हाँ, गगन के तो घनेरे रंग हैं
किन्तु चिड़िया को बसेरा चाहिये ॥
दुख मेरा है एक बच्चे की तरह
हर समय ’सौरभ’ खिलौना चाहिये ॥
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--सौरभ
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(मौलिक और अप्रकाशित)
Comment
यदि सुशासित देश-सूबा चाहिये..
शाह क्या जल्लाद होना चाहिये !? ------बहुत गंभीर सवाल !!!उनके लिए जिनमे सब्र और इन्तजार नहीं .....बेहद शानदार मतला
नाम इक उड़ता हुआ फिर आ गया
होंठ पर फूलों का गमला चाहिये.. !!------क्या बात ...बहुत दिलकश शेर
वक़्त क्या.. कर दूँ निछावर ज़िन्दग़ी
पर तुम्हें तो सिर्फ़ कंधा चाहिये !------सही समझा वो कंधा जिसे जब चाहे जैसे चाहें प्रयोग करें
बहुत सुन्दर ग़ज़ल लिखी है आ० सौरभ जी ,सभी अशआर शानदार हैं दिली दाद कबूलें
वाह लाजवाब ग़ज़ल हर शेर बेमिसाल ढेरों दाद इस अनुपम प्रस्तुति के लिये। खुसूसन इस गज़ल का मत्ला तो सटीक है
....किस ख़ास शेर का उल्लेख करूँ ..हर शेर एक नायाब ..सच्चा ...खूबसूरत बयान है ..लाजवाब ..इस शानदार ..मुकम्मल ..जिंदाबाद ...ताजगी का एहसास कराती ग़ज़ल के लिए अभिवादन अभिनन्दन आदरणीय श्री !!
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