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याद  की   छाई  घटाये  चाँद  उनमे  खो  गया  I

रोते-रोते थक गया  तो नील  नभ पर सो गया  I

 

ह्रदय सागर की लहर पर ज्वार  का छाया नशा

स्वप्न  के  टूटे   किनारे  चांदनी   में धो  गया  I

 

पर्वतो के श्रृंग पर  है  शाश्वत  हिम  का  मुकुट

मौन  के  सम्राट का  भी  ह्रदय  प्रस्तर हो गया  I

 

देखकर  इस  देह के  पावन मरुस्थल का धुआं

एक  सहृदय रेत  में  कुछ आंसुओ को बो गया  I

 

कल्पना के कलश में करुणा  अभी 'गोपाल' की

ढल न पाई  कवि  ह्रदय में दर्द  आकर रो गया  I

 

 

(मौलिक एवं अप्रकाशित )

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 7, 2014 at 9:57am

याद  की   छाई  घटाये  चाँद  उनमे  खो  गया  I

रोते-रोते थक गया  तो नील  नभ पर सो गया  I-----क्या शानदार मतला हुआ है सच में दिल मोह लिया 

 

ह्रदय सागर की लहर पर ज्वार  का छाया नशा

स्वप्न  के  टूटे   किनारे  चांदनी   में धो  गया  I-----बहुत भाव पूर्ण ....जबरदस्त बिम्ब 

 

पर्वतो के श्रृंग पर  है  शाश्वत  हिम  का  मुकुट

मौन  के  सम्राट का  भी  ह्रदय  प्रस्तर हो गया  I------जैसे हिमालय को ही साक्षात देख रही हूँ 

 

देखकर  इस  देह के  पावन मरुस्थल का धुआं

एक  सहृदय रेत  में  कुछ आंसुओ को बो गया  I-----ह्रदय स्पर्शी 

 

कल्पना के कलश में करुणा  अभी 'गोपाल' की

ढल न पाई  कवि  ह्रदय में दर्द  आकर रो गया  I------वाह्ह्ह वाह मक्ता भी निःशब्द करता है 

सर्व प्रथम तो देर से पढने के लिए क्षमा चाहती हूँ ,पता नहीं इतनी सुन्दर प्रस्तुति आँखों से कैसे छुपी रही ,तहे दिल से ढेरों दाद इस सुन्दर ग़ज़ल पर आ० डॉ गोपाल नारायण जी |

 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 7, 2014 at 3:38am

इस प्रस्तुति पर सुधीजनों और ग़ज़ल पर अभ्यास करने वालों की इतनी अच्छी और व्यापक टिप्पणियाँ यी हैं कि अब कुछ कहना उचित नहीं लगता. सादर बधाइयाँ स्वीकारें, आदरणीय गोपाल नारायनजी.

शुभ-शुभ

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on July 6, 2014 at 10:05pm

आदरणीय  बागी जी

आपका आशीष मिला i मै कृतकृत्य हो गया i आपसे इसी स्नेह की सतत  अभिलाषा रहेगी i सादर i


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on July 6, 2014 at 9:34pm

बहुत ही प्यारी ग़ज़ल हुई है आदरणीय गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी, बहुत बहुत बधाई ।

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on July 5, 2014 at 1:07pm

आदरणीय करुण जी

आप बहुत बहुत आभार i

Comment by Santlal Karun on July 4, 2014 at 5:22pm

आदरणीय डॉ. गोपाल जी, इस अच्छी-सी हिन्दी ग़ज़ल के लिए हार्दिक साधुवाद एवं सद्भावनाएँ !

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on July 3, 2014 at 6:51pm

चौहान जी

आपके प्रोत्साहन का हार्दिक स्वागत है i

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on July 3, 2014 at 6:50pm

तिलक राज कपूर जी

आपका आभारी हूँ श्रीमन i

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on July 3, 2014 at 6:49pm

जीतू जी

आप छोटे है तो मुझे यही संबोधन अच्छा  लगा i सस्नेह i

Comment by Tilak Raj Kapoor on July 3, 2014 at 1:27pm

खूबसूरत ग़ज़ल। 

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