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ज़रा सी बात पर अनबन, भरोसे टूट जाते हैं
कि साथी सात जन्मों के पलों में छूट जाते हैं
ये दिल का मामला प्यारे नहीं दरकार पत्थर की
ज़रा सी बेरुखी से ही ये शीशे फूट जाते हैं
ये ऐसा दौर है साहिब कि आँखें खोल हम सोये
मगर हद है लुटेरे सामने ही लूट जाते हैं
ये माना बेखुदी में हो मगर कुछ होश भी रखना
बहुत जल्दी ही ख्वाबों के घरौंदे टूट जाते हैं
खुदी में दम नहीं है गर तो हासिल कुछ नहीं होता
कि दरिया पार होकर भी किनारे छूट जाते हैं
संजू शब्दिता मौलिक व अप्रकाशित
Comment
बहुत सुंदर ग़ज़ल हुई है ..दिली दाद क़ुबूल करें
आदरणीय महोदया,
बहुत अच्छी गजल कही आपने, एक-एक शेअर काबिले दाद हैा
/ ज़रा सी बात पर अनबन, भरोसे टूट जाते हैं
कि साथी सात जन्मों के पलों में छूट जाते हैं /
बहुत खूब । आज के सामाजिक परिवेश पर बिल्कुल स्टीक बैठता शेयर
बधाई स्वीकार करें
आदरणीय संजु जी बहुत ही उम्दा ग़ज़ल कही है आपने सभी अशआर पसंद आये मेरी ओर से हार्दिक बधाई स्वीकारें.
आदरणीया संजू जी , खूब सूरत गज़ल के लिये आपको बधाइयाँ ॥
आदरणीया अआप्की आज की रचना कीतारीफ़ की जाए कम है ..बेहतरीन ..बेहतरीन ..सादर बधाई के साथ
आदरणीया
बहुत सुन्दर गजल हुयी है i हर शेर उम्दा है i आपको बधाई i
बहुत बेहतरीन गजल आदरणीया संजू जी, हार्दिक बधाई स्वीकार करें
ये माना बेखुदी में हो मगर कुछ होश भी रखना
बहुत जल्दी ही ख्वाबों के घरौंदे टूट जाते हैं................बहुत खूब
ये ऐसा दौर है साहिब कि आँखें खोल हम सोये
मगर हद है लुटेरे सामने ही लूट जाते हैं....वाह! उम्दा गजल... बधाई.
आदरणीया संजू जी, आप ने कथ्य और शिल्प दोनों दृष्टियों से एक अच्छी-सी ग़ज़ल प्रस्तुत की है; हार्दिक साधुवाद एवं सद्भावनाएँ !
ये ऐसा दौर है साहिब कि आँखें खोल हम सोये
मगर हद है लुटेरे सामने ही लूट जाते हैं....वाह!
उम्दा गजल के लिए आपको बहुत बहुत बधाई प्रिय संजु जी
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