For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

दुष्ट दुर्जन पशु बराबर हो गए,
आज कल इंसान पत्थर हो गए,

क़त्ल चोरी रेप दंगो के विषय,
सुर्ख़ियों में आज ऊपर हो गए,

स्वार्थ से कोमल ह्रदय को सींचकर,
प्रेम से वंचित हो ऊसर हो गए,

अंततः जब सत्य मैंने कह दिया,
प्राण लेने को वो तत्पर हो गए,

ढह गई दीवार आदर भाव की,
प्रेम के आवास खँडहर हो गए,

पथ प्रदर्शक जो कभी थे साथ में,
राह में वो आज ठोकर हो गए,

जो समय के साथ चलते हैं नहीं,
एक दिन वो बद से बदतर हो गए.

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

Views: 843

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by अरुन 'अनन्त' on July 9, 2014 at 10:43am

आदरणीय रवि सर क्या कहूँ निःशब्द हूँ आपने जिस सुन्दरता के साथ टिपण्णी की है मन प्रसन्न हो उठा हृदयतल से आपका हार्दिक आभार. स्नेह यूँ ही बनाये रखिये

Comment by अरुन 'अनन्त' on July 9, 2014 at 10:41am

आदरणीय निलेश जी बहुत बहुत शुक्रिया आपका


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 9, 2014 at 10:35am

आदरणीय अरुण अनंत भाई , क्या लाजवाब ग़ज़ल कही है , हार्दिक बधाइयाँ ॥

क़त्ल चोरी रेप दंगो के विषय,
सुर्ख़ियों में आज ऊपर हो गए,

अंततः जब सत्य मैंने कह दिया,
प्राण लेने को वो तत्पर हो गए,

जो समय के साथ चलते हैं नहीं,
एक दिन वे बद से बदतर हो गए. --------------- इन तीनो अश आर के लिये ढेरों बधाइयाँ स्वीकार करें


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on July 8, 2014 at 10:40pm

स्वार्थ से कोमल ह्रदय को सींचकर,
प्रेम से वंचित हो ऊसर हो गए,

अंततः जब सत्य मैंने कह दिया,
प्राण लेने को वो तत्पर हो गए,

ढह गई दीवार आदर भाव की,
प्रेम के आवास खँडहर हो गए, 

वाह लाजवाब अशआर हैं आदरणीय अरुण भाई सादर बधाई स्वीकार करें

Comment by Dr. Vijai Shanker on July 8, 2014 at 10:45am
अंततः जब सत्य मैंने कह दिया,
प्राण लेने को वो तत्पर हो गए,
सत्य के पक्ष में होना सबसे बड़ी चुनौती है .
सुन्दर प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत बधाई आ o अरुण अनंत जी.

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by अरुण कुमार निगम on July 8, 2014 at 9:38am

नहीं होती है हलचल जब,तो बरसों तक नहीं होती

मगर होती शुरू है तब , गज़ल बनती ही जाती है ................

सुप्त ज्वालामुखी के जागने की शुभकामनायें.....

सामयिक परिदृश्यों पर सटीक गज़ल कही...........

अंततः जब सत्य मैंने कह दिया,
प्राण लेने को वो तत्पर हो गए................वाह !!!!!!!!!!!!!!

Comment by Dr Ashutosh Mishra on July 7, 2014 at 8:45pm

अरुण जी ..पाठक को बांध देने वाली रचना ..सुंदर प्रतीकों के माध्यम से वर्तमान परिदृश्य में बदले मानवीय हालातो को रचना के मध्याम से पाठको तक पहुचाने में आप शत प्रतिशत सफल रहे है किसे शेर बिशेस की बात करना ग़ज़ल के साथ बेमानी होगी ..इस अप्रतिम रचना के लिए आपको हार्दिक बधाई सादर 

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on July 7, 2014 at 7:11pm

आ0 अरून अनन्त भाईजी,  बहुत सुन्दर गजल हुई है।  हार्दिक बधाई स्वीकारें।  सादर,

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on July 7, 2014 at 6:25pm

अरुण जी

रवी जी ने विस्तार से प्रकाश डाला है i मै भी मुरीद हुआ i

Comment by shalini rastogi on July 7, 2014 at 6:23pm

समयानुरूप व सार्थक ग़ज़ल .. हरेक शेर अपने आप में सम्पूर्ण है .. बधाई !

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service