दुष्ट दुर्जन पशु बराबर हो गए,
आज कल इंसान पत्थर हो गए,
क़त्ल चोरी रेप दंगो के विषय,
सुर्ख़ियों में आज ऊपर हो गए,
स्वार्थ से कोमल ह्रदय को सींचकर,
प्रेम से वंचित हो ऊसर हो गए,
अंततः जब सत्य मैंने कह दिया,
प्राण लेने को वो तत्पर हो गए,
ढह गई दीवार आदर भाव की,
प्रेम के आवास खँडहर हो गए,
पथ प्रदर्शक जो कभी थे साथ में,
राह में वो आज ठोकर हो गए,
जो समय के साथ चलते हैं नहीं,
एक दिन वो बद से बदतर हो गए.
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
आदरणीय रवि सर क्या कहूँ निःशब्द हूँ आपने जिस सुन्दरता के साथ टिपण्णी की है मन प्रसन्न हो उठा हृदयतल से आपका हार्दिक आभार. स्नेह यूँ ही बनाये रखिये
आदरणीय निलेश जी बहुत बहुत शुक्रिया आपका
आदरणीय अरुण अनंत भाई , क्या लाजवाब ग़ज़ल कही है , हार्दिक बधाइयाँ ॥
क़त्ल चोरी रेप दंगो के विषय,
सुर्ख़ियों में आज ऊपर हो गए,
अंततः जब सत्य मैंने कह दिया,
प्राण लेने को वो तत्पर हो गए,
जो समय के साथ चलते हैं नहीं,
एक दिन वे बद से बदतर हो गए. --------------- इन तीनो अश आर के लिये ढेरों बधाइयाँ स्वीकार करें
स्वार्थ से कोमल ह्रदय को सींचकर,
प्रेम से वंचित हो ऊसर हो गए,
अंततः जब सत्य मैंने कह दिया,
प्राण लेने को वो तत्पर हो गए,
ढह गई दीवार आदर भाव की,
प्रेम के आवास खँडहर हो गए,
वाह लाजवाब अशआर हैं आदरणीय अरुण भाई सादर बधाई स्वीकार करें
नहीं होती है हलचल जब,तो बरसों तक नहीं होती
मगर होती शुरू है तब , गज़ल बनती ही जाती है ................
सुप्त ज्वालामुखी के जागने की शुभकामनायें.....
सामयिक परिदृश्यों पर सटीक गज़ल कही...........
अंततः जब सत्य मैंने कह दिया,
प्राण लेने को वो तत्पर हो गए................वाह !!!!!!!!!!!!!!
अरुण जी ..पाठक को बांध देने वाली रचना ..सुंदर प्रतीकों के माध्यम से वर्तमान परिदृश्य में बदले मानवीय हालातो को रचना के मध्याम से पाठको तक पहुचाने में आप शत प्रतिशत सफल रहे है किसे शेर बिशेस की बात करना ग़ज़ल के साथ बेमानी होगी ..इस अप्रतिम रचना के लिए आपको हार्दिक बधाई सादर
आ0 अरून अनन्त भाईजी, बहुत सुन्दर गजल हुई है। हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर,
अरुण जी
रवी जी ने विस्तार से प्रकाश डाला है i मै भी मुरीद हुआ i
समयानुरूप व सार्थक ग़ज़ल .. हरेक शेर अपने आप में सम्पूर्ण है .. बधाई !
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