For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

यात्रा संस्मरण, मेलबोर्न

मेलबोर्न, औस्ट्रेलिया यात्रा का एक सुखद संस्मरण बाँटना चाहूँगी । जैसे मै भीगी आपको भी यादों की बारिश में भिगोना चाहूँगी . बड़ी -बड़ी मिलों , कारखानों वाले क्षेत्रों को पार करते हुए , नेशनल पार्क में संरक्षित ,सड़कों के किनारे लगाई गई फेंसिंग के समीप तक आ गए कंगारुओं के झुण्ड का विहंगम अवलोकन करते हुए हम प्राचीन गाँव सोरेन्टो आ गए। . इतिहास को गर्भ में रखे हुए ऑस्ट्रेलियाई सभ्यता व् संस्कृति का भरपूर जायज़ा यहां लिया जा सकता है। यहाँ का समुद्री तट भी उतना ही रम्य.

सागर के सीने पे सवार जलपोत / जलयान और उस पर आसीन हम लहरों को चीरते रोमांचक यात्रा का लुत्फ़ उठाने में मशगूल थे। बेसमेंट में सैकड़ों कारें पार्क करने की व्यवस्था .I ऊपरी तल पर बैठने की उत्तम व्यवस्था .i कहीं रंगीन कुर्सियाँ ,कहीं हत्थेदार कुर्सियाँ तो कहीं डिजाइनदार कुर्सियाँ I एक ओर बच्चों का कॉर्नर ,जहाँ सुरंगनुमा एवं कई तरह के खिलौने , छोटी छोटी रंगीन कुर्सियाँ टेबल्स I एक टेबल पर बच्चों की चित्रकारी हेतु पेपर पेन्सिल्स ,कलर्स आदि। मध्य में बड़ा घुमावदार सोफ़ा , जल जलपान हेतु कैंटीन , आधुनिक शौचालय। यांनी जीवन की मूलभूत आवश्यकताएं एक जलपोत पर देख कर मुँह से वॉव .... वाह ही निकल रहा था। ऊपर डेक पर रेलिंगनुमा छत तथा प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद उठाने के लिए , बैठने के लिए लकड़ी के बेन्चेस रखे हुए थे। शीतल समुद्री हवाएँ जहाँ झकझोर जातीं वहीं चारों और समुद्र का अहसास सिहरन भर देता . I हम नीचे बैठने की केबिन में आकर बैठ गए I . खिड़कियों से समुद्री नज़ारों को आँखों में एवं कैमरों में कैद करने लगे। देखा सागर की लहरों पर पूरी तरह से जलपोत मचल रहा है , जिस पर हम सवार थे। पोत आगे बढ़ने की कवायद करता तो लहरें पूरी ताकत लगा कर पीछे धकेल देतीं। पूरा पोत डगमगा जाता I . फिर पोत का मशीनी ज़ोर आगे बढ़ने के लिए। अंततः थक हार कर टूटतीं फेनिल लहरें दूर हो जातीं . अश्रु बहाती हुई सी ... रास्ता दे देतीं जलयान को। दुबारा फिर उसी हौसले के साथ स्वागत करने को तैयार I एकबारगी कोमल हृदया नारी जैसी प्रतीत होने लगीं ये लहरें . . I नारी ..,समस्याओ से घिरे होना जिनकी नियति है। परिस्थितियों से हिम्मत से लड़ने का अदम्य साहस .. फिर भी पुरुष से कब जीती है ? जूझती , लड़ती यूँ ही थक हार कर सो जाती है या चुप हो जाती है। . पर मुझे लगा जैसे लहरें संदेशा दे रही है। - हर परिस्थितियों से मुकाबला करने का , कभी हिम्मत न हारने का। उसी पल लगा ये हार कर भी जीत गईं। समुद्र-दर्शन की तमाम सैलानियों की रोमांचक यात्रा को सुखद बनाने में सहयोग कर। कैसा समर्पण है .... अद्भुत। सबकी खुशियों में अपनी खुशी तलाश लेना ये एक नारी ही कर सकती है। नमन करती हूँ विशालहृदया लहरों को। उनके जज़्बे को जो जीत का जश्न मनाती हुई कह रही हों जैसे - हो सके तो मेरी आँखों में झाँक कर देखो , प्यार इफरात भरा आओ आँक कर देखो

मौलिक और अप्रकाशित

Views: 436

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Shubhranshu Pandey on July 20, 2014 at 6:22pm

आदरणीया मंजरी जी,

एक सुन्दर यात्रा संस्मरण के भाग को पढ़् कर अच्छा लगा. इसके पूरे भाग के पढने की इच्छा को जल्द ही आप पूरी करेंगी..

सादर.

Comment by Santlal Karun on July 20, 2014 at 9:05am

आदरणीया मंजरी जी,

       आप ने इस संस्मरण में मुख्यतया लहरों को नारी से उपमित करते हुए उसकी संघर्ष-कथा, पराजय-व्यथा तथा पराजित विजय को व्याख्यायित किया है ---

" एकबारगी कोमल हृदया नारी जैसी प्रतीत होने लगीं ये लहरें . . I नारी ..,समस्याओ से घिरे होना जिनकी नियति है। परिस्थितियों से हिम्मत से लड़ने का अदम्य साहस .. फिर भी पुरुष से कब जीती है ? जूझती , लड़ती यूँ ही थक हार कर सो जाती है या चुप हो जाती है। . पर मुझे लगा जैसे लहरें संदेशा दे रही है। - हर परिस्थितियों से मुकाबला करने का , कभी हिम्मत न हारने का। उसी पल लगा ये हार कर भी जीत गईं। समुद्र-दर्शन की तमाम सैलानियों की रोमांचक यात्रा को सुखद बनाने में सहयोग कर। कैसा समर्पण है .... अद्भुत। सबकी खुशियों में अपनी खुशी तलाश लेना ये एक नारी ही कर सकती है। नमन करती हूँ विशालहृदया लहरों को। उनके जज़्बे को जो जीत का जश्न मनाती हुई कह रही हों जैसे - हो सके तो मेरी आँखों में झाँक कर देखो , प्यार इफरात भरा आओ आँक कर देखो |"

       पर इसे पढ़ने के बाद एकदम स्पष्ट है कि पूरे गागर को उड़ेले बिना संस्मरण को चलताऊ ढंग से समाप्त कर किया गया है | आरम्भ तो किया आप ने ज़ोश के साथ, किन्तु संस्मरण का पूरा का पूरा पेट गायब है | हाँ, अंत में पैरों के झलक के साथ समापन अच्छा किया है |

       खैर..,  आस्ट्रेलिया-प्रवास पर आधारित इस लघु कायिक रुचिकर संस्मरण के लिए हार्दिक साधुवाद एवं सद्भावनाएँ !

 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on July 17, 2014 at 3:19pm

महनीया  

आपका संस्मरण प्रतीकात्मक होने के कारण  बहुत सुन्दर बन पड़ा है i  मुझे आपकी एक वाक्य में  रूढिगत वास्तविकता की बू लगती है i नारी फिर भी पुरुष से कब जीती है i यह सत्य नहीं है i पुरुष नारी से कहाँ कहाँ हारता है , इसका अहसास नारी को नहीं होता i नारी स्वयं नहीं हारती वह अपने स्वभाव से हारती है i उसमे समर्पण की भावना होती है i यह बड़ी उदात्त भावना है i  हम ई श्वर के प्रति समर्पित होते है i मनुष्य में यह समर्पण नहीं है i  तो वह बड़ा कैसे है i नारी के बिना वह भी अपूर्ण , अधूरा और असहाय है i

शायद मै कुछ अधिक कह गया i  सादर i

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna posted blog posts
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Nov 2
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Nov 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Oct 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Oct 31
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Oct 31
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
Oct 31

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service