For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

“खुशी जी आपको मेरा सलाम” / एक संस्मरण.........

यही कोई 40 से 45 के बीच की रही होगीं वो गठीला बदन, घने काले बाल थ्री स्टेप में कटे हुए, माथे पर सुर्ख लाल बिंदी उनके चेहरे की खूबसूरती को और भी बढ़ा रही थी हलकी हवा के झोके से उनके बालों की लटकती हुई लट लयमान होकर मानो उनके चेहरे को पूरी तरह से ढकना चाह रही हो उनके एक ओर शून्य में एकटक निहारने की कोशिश जो बरबस उनकी तरफ मुझे आकर्षित कर रही थी  उनके व्यक्तित्व को देखकर कोई भी ये महसूस कर सकता था कि उनके चेहरे पर प्रकति ने स्थाई रूप से मुस्कुराहट और प्यार चिपकाए होंगे लेकिन वक्त के थपेड़ों ने पीड़ा, दर्द, थकान के अनगिनत धब्बे उकेर दिए हैं। फिर भी चेहरे पर नजर आने लगी झुर्रियों के बीच आई मुस्कुराहट और प्यार छुपाए नहीं छुपता था !
समय का दिया हुआ दर्द भी उनके चेहरे की सिलवटों पर साफ नजर आ रहा था ! उनको देखकर बार-बार मेरा मन एक ही सवाल करता था कि अपनी किशोर उम्र में शादी के पहले, और जवान उम्र में शादी के बाद उन्होंने भी सपने जरूर देखे होंगे पर उनके चेहरे पर ये सपने नहीं, केवल उन के भग्नावशेष ही दिखाई दे रहे थे !


उस सभ्य महिला के करीब जाने से पहले मैंने जाने कितने भाव अपने मन में पैदा कर लिए थे प्रणाम करने के साथ ही मैं उनके निकट ही बैठ गई वो थोडा सकुचाई फिर मंद मंद मुस्कराने लगीं एक दो बातचीत के बाद थोड़ी ही देर में हम दोनों इतना खुल गये, यूँ लगा कि मानो हम दोनों एक दूसरे को बहुत समय से जानते हों ! मैंने यूँ ही पूछ दिया कि खुशी जी... हाँ मुझे याद है उन्होंने अपना नाम मुझे खुशी ही बताया था !!!!   मैंने कहा खुशी जी एक जिज्ञासा है जिसका जवाब आपके पास है मुझे लगता है कि आप कहीं न कहीं से बिखर गई हैं ऐसी क्या बात है मुझसे शेयर करिए मन हल्का हो जाएगा.. जिस व्यक्ति  से आपकी शादी हुई है, वह आपको प्यार तो बहुत करते होंगे ? उनका जवाब सुनकर मैं हैरान रह गई वो बोली कि वैसा ही प्यार तो वह अपनी बाइक से भी करते है।  सुनीता जी मर्दों की दुनिया औरत के शरीर के इर्द-गिर्द घूमती रहती है। उनकी कुंठाएं, उनकी गाॅसिप, उनके बाजार यहां तक कि उनकी खबरें भी हम औरतों से भरी होती हैं ये मर्द इस हद तक निर्मम और संवेदनाहीन हो चुके हैं कि जिस शरीर से जन्म लेते हैं जब वही शरीर जीवन के अंकुरण की प्रक्रिया से हर महीने गुजरता है तो उस दर्द का भी मजाक उड़ाने में नहीं हिचकते। हम औरतों को ये नही पता कि अगले पल उनकी जिंदगी का क्या होगा लेकिन फिर भी हम औरतें इस सबके दौरान अपने सपने, शौक और जुनून को जिंदा रखे रहतीं हैं कमरतोड़ आॅफिस की घंटों की नौकरी के बाद घर को घर बनाने के एवज में थक कर चूर हो जातीं हैं कारण कि ये कार्य उन्हें उस रूटीन से आजादी देता है और उन्हें उनके वजूद यानि उनके होने का एहसास कराता है , जैसे कोई पल भर के लिए हवा का ताजा झोंका झूम-झूम कर ताजगी दे जाता हो ! सुनीता जी कुल मिलकर ये करने का सार यही होता है कि कल को पता नहीं किसके पल्ले बंधना पड़े, न जाने कौन पर कतर दे। पुरुषों की जिंदगी तो 60 से 90 तक बिना रोक टोक जाती है लेकिन हम औरतों की जिंदगी बस 20 से 28 तक , वो ऐसे कि जब तक गृहस्थी की उम्रकैद नहीं शुरू हो जाती !


मैं उनकी बातें सुनकर व उनके लगातार बोलने से झुंझला पड़ी लेकिन उन्होंने बड़ी शालीनता से कहा कि मेरी पूरी बात तो सुन लो उसके बाद बोलना ! वो फिर बोलने लगीं कि तुम इतनी बात सुनकर झुंझला गई हो तो सुनो हम सब और हमारी माएं इसी गृहस्थी की चारदीवारी में बंद एक कैदी की तरह हैं। वे और हम सब ये भूल गये हैं, कि इस  गृहस्थी के बाहर भी एक नई दुनिया है जिसकी जगमगाहट से वे वंचित हैं !!!!!    सुनीता जी ऐसी महिलाओं को जरा इस गृहस्थी नुमा घर के फाटक से बाहर खड़ा करके तो देखिए आप, वे महिलायें एक मासूम बच्चे की तरह लड़खड़ा कर वहीँ गिर जाएंगी, और अंत में खुद लौटकर इसी गृहस्थी नामक जेल का दरवाजा खटखटाकर अंदर आने की गुहार लगाएंगी ।
मेरे पास शब्द न थे कुछ भी कहने को मैं अवाक थी उनकी बातों को सुनकर !!!!!


उस सभ्य महिला के विचारों ने एकबारगी मुझे ये सोचने पर मजबूर कर दिया था कि जिन महिलाओं के इतने सपनों के खंडहर हो जाने के बाद, अब उन महिलाओं के जेहन की जमीन पर शायद ही कोई सपना उगता होगा लेकिन उनसे बात करते हुए मुझे ये जरुर महसूस हुआ, कि अभी भी उनके जेहन में कुछ सपने जीवित हैं और शायद नए भी उग रहे हैं !!!!


वैसे मैं खुशी जी जैसी सोच रखने वाली महिलाओं से मैं यही कहना चाहूंगी कि जब हौंसले हो बुलंद तो महिला पुरुष का भेद नहीं रह जाता है हाँ मैं मानती हूँ कि अबला नारी की कहीं अहमियत नहीं होती। हाँ, उसकी सहनशीलता की जरूर अहमियत होती है लेकिन तभी तक जब तक वह शिकायत नहीं करती।


देखा जाये तो खुशी जी जैसे व्यक्तित्व के मालिक हमारे चरित्र के दोगलेपन का पर्दाफाश करने के लिए ही होते हैं। और अब अंत में उन महिला के विचारों को सलाम करते हुए स्वरचित कुछ पंक्तियों से  रूबरू कराना  चाहूंगी कि .......

दर्द की स्याही बनाई, कलम जज्बात की ले ली है लिखने को !

किस्सा इश्क का लिखकर, कलम एहसास की ले ली है लिखने को !!

लब्ज लेते हैं सिसकियाँ , कलम इबादत की ले ली है लिखने को !

ख्वाबों में डूबकर , कलम लम्हें खास की ले ली है लिखने को !!

यूँ सच्चाई के अल्फाज बयाँ तो हर लेखनी कर ही देती है !

अब मैंने ख्वाबों से हकीकत की, कलम ले ली है लिखने को !!

 

मौलिक एवँ अप्रकाशित...

 सुनीता दोहरे ...... 

 

 

Views: 685

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by sunita dohare on September 5, 2014 at 7:06pm

MAHIMA SHREE , जी , आपका बहुत -बहुत धन्यवाद ........ सादर प्रणाम !!!"

Comment by MAHIMA SHREE on September 5, 2014 at 5:03pm

आपके संस्मरण को पढ़ कर हिल सी गयी ..ख़ुशी जी द्वारा कही गयी सच्चाई सभी  .. स्त्रियों की सच्ची तस्वीर दिखा रहा है ..आपकी संवेदनशील लेखनी को नमन बधाई 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 22, 2014 at 7:40pm

बहुत सुन्दर.... पठनीय... भाव पूर्ण संस्मरण लिखा आपने सुनीता जी ,हार्दिक बधाई |

Comment by sunita dohare on July 22, 2014 at 6:49pm

Saurabh Pandey जी , 
बस इतना कहूँगी कि किसी भी रचना को पढने वाले व्यक्तियों के मन में अलग -अलग भाव उभरते हैं कोई उससे मिली सीख को ग्रहण करता है कोई पसंद करता है और कोई अन्यथा लेकर उसके विपरीत सोचता है ! पोष्ट पर आने के लिए आपका बहुत -बहुत धन्यवाद ........ सादर प्रणाम !!!" 

Comment by sunita dohare on July 22, 2014 at 6:45pm

वेदिका  जी , आपका बहुत -बहुत धन्यवाद ........ सादर प्रणाम !!!"

Comment by sunita dohare on July 22, 2014 at 6:44pm

Santlal Karun जी , आपका बहुत -बहुत धन्यवाद ........ सादर प्रणाम !!!"


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 22, 2014 at 12:02pm

आदरणीया सुनीताजी,
क्षुरस्य धारा निशिता दुरत्यया, दुर्गम पथः.. के भावों को साकार करती नारी-जीवन के इर्द-गिर्द एक रोचक संस्मरण का बुना जाना तथ्यपरक लगा. तने हुए रस्से पर चलने वाले नट की चेष्टा के सापेक्ष ज़िन्दग़ी को देखा है आपने, खुशीजी के माध्यम से.
 
इसी क्रम में कहूँ तो मुझे एक लघु कथा का स्मरण हो आया है.
पिंजराबद्ध जीवन जीते एक शेर को एक दफ़ा मौका मिला और वह उन्मुक्त वन की ओर निकल गया. उन्मन भाव लिये वह विचरता रहा. उन्मुक्त जीवन से मिली प्रसन्नता की अनुभूति से वह संतृप्त था. लेकिन भूख लगने पर शिकार करना, प्यास लगने पर तमाम कठिनाइयों के बावज़ूद पानी के सोते तक जाना, नींद महसूस होने पर उम्मीद के अनुरूप जगह आदि खोजना, जैसे कार्य शीघ्र ही उसे दुष्कर लगने लगे. कारण कि उसे इन सबों के लिए आजतक सोचना ही नहीं होता था. सहज उपलब्ध लगती वस्तुओं के लिए कितने बल और कितने संघर्ष की आवश्यकता होती है, इसका अनुभव उसे अब हो रहा था. कथा आगे यही कहती हुई समाप्त हो जाती है कि पखवारा नहीं गुजरा, वह शेर चुपचाप वापस उसी पिंजरे में आ गया.

 

कहना न होगा कि पलायनवादी सोच से उपजी यह एक निर्घिन कथा है. लेकिन कहने को बहुत कुछ कह जाती है, है न?
सादर

Comment by वेदिका on July 20, 2014 at 1:07pm
ऐसी महिलाओं को जरा इस गृहस्थी नुमा घर के फाटक से बाहर खड़ा करके तो देखिए आप, वे महिलायें एक मासूम बच्चे की तरह लड़खड़ा कर वहीँ गिर जाएंगी, और अंत में खुद लौटकर इसी गृहस्थी नामक जेल का दरवाजा खटखटाकर अंदर आने की गुहार लगाएंगी ।
मेरे पास शब्द न थे कुछ भी कहने को मैं अवाक थी उनकी बातों को सुनकर !!!!!//

कमाल असलियत जो भी कहा यथार्थ के धरातल पर कही आपने कहानी।
वेदना के चित्रण पर आपकी चलती कलम को साधुवाद आदरणीया सुनीता जी!
Comment by Santlal Karun on July 20, 2014 at 7:21am

आदरणीया सुनीता दोहरे जी,

'खुशी जी आप को मेरा सलाम' एक पठनीय, प्रभावपूर्ण संस्मरण; हार्दिक साधुवाद एवं सद्भावनाएँ !

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service