(मौलिक व अप्रकाशित)
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Comment
उन्ही के भरोसे तो इनकी नेता गिरी टिकी है , कैसे नही बचायें उनको । एक और बढिया लघु कथा के लिये आपको बधाइयाँ ।
गणेश भाई, वाह !
नेताजी के व्यक्तित्व को क्या खूब परिभाषित किया है आपने ! लघुकथा सामाजिक विसंगतियों के मूल कारणों पर करारा प्रहार करती है.
कथानक इतना प्रभावी है कि मुझे हाल में देखी ’स्पेशल २६’ के एक दिलचस्प सीन का स्मरण हो आया.
बहुत-बहुत बधाई इस लघुकथा के लिए..
बहुत मौजूं और सटीक लघुकथा , बहुत बहुत बधाई..
आदरणीय गणेश जी बागी जी,
वर्तमान विडम्बना पर आधारित व्यंग्यपरक पठनीय; हार्दिक साधुवाद एवं सद्भावनाएँ !
आदरणीय बागी जी
प्रथम पंक्ति तो पढ़कर हंसी आयी i एरिया में नेता जी से बढ़कर नया चोर कौन ? फिर व्यंग्य उभरता है i उन्होंने कलुआ को खबर करवा दे -जिस अंदाज में कहा उससे पता चलता है कि वह नेता जी के लिये अपरिचित नहीं था i अब मॉल के सार्वजनिक होने का भय i हो सकता है वह भी कलुआ के ही हुनर का नतीजा हो i यदि नहीं भी तो भी नेता जी का सामान संदिग्ध तो था ही i एक सुगठित लघु कथा i आपको बधाई ,आदरणीय i
बहुत ही बढ़िया लघुकथा. एक कहावत..चोर-चोर मौसेरे भाई, यहाँ फिट बैठ रही है. आपको हार्दिक बधाइ आदरणीय बागी जी
हाहाहा -----नेता जी डर गए कि चोरी के माल में चोरी का माल मिलेगा पुलिस को फिर उसकी साख़ का क्या होगा ....बहुत बढ़िया जबरदस्त कटाक्ष करती लघु कथा|हेतु हार्दिक बधाई आ० गणेश जी |
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