तुम्हारा पहला प्यार
सरिता के दोनों तटों को सहलाता कल-कल करता –
अबाध गति सा बह रहा था हमारा प्यार।
वसंती हवा की मदिर सुगंध लिए उन्मुक्त-
सी थी हमारी मुस्कान,
धुले उजले बादलों में छुपती-छुपाती –
इंद्र्धनुष जैसी थी हमारी उड़ान ।
हवा के झौंके ने सरकाया था दुपट्टा मुख से-
तुम अपलक निहारते रहते,
बस तुम ही हो मेरा पहला प्यार-
धीरे से मधुर शब्दों में कहते ।
आखिर वो सलौना सा दिन आ ही गया,
जिस का हम दोनों को था वर्षों से इंतजार ।
चाँद तारे साक्ष्य बन कर आए थे बारात,
ढ़ोल मंजीरे सहनाई ले कर आई-
फेरों वाली मनभावन सुंदर रात ।
अब मैं धड़कती थी तुम्हारी साँसों में,
सांसें लेती थी सुगंध बन कर-
तुम्हारी ही साँसों में।
तुम मुझ को लगते स्वच्छ नीला आकाश-
उसमें अठखेलियाँ करती “मैं” पूनम का चाँद।
जब मैं चमकती मोती बन तुम्हारी-
सिप्पी जैसी आँखों में,
तुम कहते, अब तुम बन गई हो-
मेरी सुंदर पहचान।
ढेरों कसौटियों पर तुम ने कसा था,
पूर्ण आश्वस्त हो खरा सोना कहा था ।
फिर न जाने एक घटना घाटी,
मेरा प्रतीक्षा करना तुम्हारी ऊब बन गई ,
खोखली लागने लगी मेरी मनुहार और –
अमावस्या की रात सा मेरा एक निष्ठ प्यार।
कौए के घौसले में कोयल के बच्चे सी-
सहमी मेरी अपनी एकाकी पीड़ा
हृदय पर किया हो किसी ने –
गहरा आघात,
कैसे पूँछूं उनसे, उनके दिल की बात।
पर पूछना चाहती हूँ मैं बार-बार,
कहो न साथी, मितवा,
क्या यही था, तुम्हारा पहला प्यार???
कल्पना मिश्रा बाजपेई
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आ० प्राची जी, आपको रचना अच्छी लगी,ये रचना के अहो भाग्यहैं । हार्दिक शुक्रिया /सादर
स्वप्नों से सजे और अपेक्षाओं के सहारे चलते प्यार की आदत और उसकी परिणति पर सुन्दर प्रस्तुति...
प्रस्तुति पर बधाई आ० कल्पना मिश्रा बाजपेयी जी
प्रेम की शुरूआती कोमल,मासूम भावनाओं को अंत तक बहुत खूबसूरती से प्रवाह दिया आपने अपनी रचना में. आपको हार्दिक बधाई आदरणीया कल्पना दीदी
सजीव चित्रण सी लगती यह रचना जैसी कोई वेदना भरी कहानी पढ़ी हो | युवावस्था में पढ़ी कई कहानियों का स्मरण हो आया |
सुंदर रचना के लिए बधाई आद कल्पना मिश्रा बाजपेई जी
वाह----वाह----
महनीया
कितनी साफगोई से आपने अपने विचार रखे हैं i मधुर प्रस्तुति i
आदरणीय आमोद जी ,आपने रचना को समय दिया और सराहना हेतु, मैं आभारी हूँ /सादर
आदरणीया राजेश कुमारी दी , आप के द्वारा कहे शब्द हमारी ताकत बन जाते हैं । अपना स्नेह यूं ही बनाए रखिए ...... हार्दिक आभारी हूँ /सादर
बहुत सुंदर रचना बधाई स्वीकार करें ...
कौए के घौसले में कोयल के बच्चे सी-
सहमी मेरी अपनी एकाकी पीड़ा
हृदय पर किया हो किसी ने –
गहरा आघात,
बहुत खूब ... उम्दा ...
आह.... निकल जाती है पढ़कर दिल को छू गई आपकी ये प्रस्तुति एक सजीव चित्र सा बनता रहा आँखों के समक्ष पढ़ते पढ़ते ,बहुत बहुत बधाई प्रिय कल्पना जी
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