प्रैस काफ्रेंस देर शाम तक चली। बाल श्रम उन्मूलन के तहत आजाद करवाये बाल श्रमिकों को पुलिस प्रेस के समक्ष लाई थी। फोटो खींचे गए, भाषण दिया गया और थानेदार साहिब का साक्षात्कार भी लिया गया। पत्रकार काफ्रेंस के बाद चाय नाश्ता कर अपने घर की ओर जा रहे थे तो सुबह से भूखे बैठे बाल श्रमिकों की ओर देखकर एक कांस्टेबल धीरे से थानेदार साहिब के कान में फुसफुसाया:
“साहिब! अब इन बच्चों का क्या करना हैे?”
”बड़े साहिब की बिटिया की शादी है अगले हफ्ते, कितना काम होगा वहाँ, छोड़ आयो वहीँ पे इन ससुरों को. "
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
अनुज, मैं वास्तविक तौर पर एक पाठक हूँ. इस धर्म का दायित्व समझता हूँ. अतः अपनी ओर से सचेत रहने का प्रयास करता हूँ. यही दायित्वबोध मुझे किसी रचना से जोड़ता है. उसी बिना पर मैं किसी रचना के परिप्रेक्ष्य में अपने सारे ’तर्क’ या ’वितर्क’ पटल पर रखता हूँ.
जहाँ तक इस लघुकथा विधा का सवाल है. मैं इस विधा में पहले दर्ज़े का विद्यार्थी हूँ. :-))
इस विधा में रचनाकर्म के क्रम में आपसबों की मेहनत और कुशलता एक रचनाकार के तौर मेरे लिए भी प्रेरणा है.
शुभ-शुभ
श्रद्धेय सौरभ भाई जी,
सादर । जब कोई लघुकथा आपकी ‘माइक्रोस्कोपिक नजर’ से निकलती है तब उसका सच सामने आता है। लघुकथा को अपना समय देने और उस पर आपकी सार्थक प्रतिक्रिया से नये रक्त का संचार होता है। यह आप ही की प्रेरणा का परिणाम है कि मैं फिर से लघुकथा लिखने को प्रेरित हुआ। धन्यवाद भाई जी ! और जैसा आप सदैव कहते हैं शुभ शुभ..
शुभ्रांशु भाई,
आप इस कला के पारखी हैं, आपकी वाहवाही से धन्य हूं।
आदरणीय लक्ष्मण जी,
सार्थक प्रतिक्रिया हेतु धन्यवाद।
आदरणीय सविता जी एवं मीना पाठक जी
लघुकथा को अपना बहुमूल्य समय देने के लिए धन्यवाद।
आदरणीय राजेश कुमारी जी,
सादर । लघुकथा में छुपे कथा तत्त्व को समझने और सराहने के लिए धन्यवाद।
लघुकथा को अपना बहुमूल्य समय देने के लिए आदरणीय विनय जी, आशा जी, महिमा जी, जवाहर जी, जितेन्द्र जी व रमेश जी का धन्यवाद।
अनुज रविभाई, यही सच है. बंधुआ-बाल मज़दूरी के खिलाफ़ लम्बी-लम्बी चर्चाओं के बाद कारवाही हुई है. खूब फोटो निकाले गये हैं. लम्बे-लम्बे लेख आये हैं और चौड़े-चौड़े वादे हुए हैं. वे बालक कहाँ हैं आज ? कोई खोज-खबर ? नहीं !
आपने कथाके मध्यम से समाज के एक स्याह पक्ष को उजागर किया है.
बहुत-बहुत बधाई, भाई
आदरणीय रवि प्रभाकर जी,
फ़्लैश की चमक के पीछे के काले सच को बखुबी बयान किया है,
बहुत सुन्दर.
सादर.
आखिरकार पुलिसिया व्यवहार दिखा ही दिया जो कई बार फर्जी मुठभेड़ दिखा कर मैडल पाने की आशा करते है | बाल श्रमिकों
पर लिखी मार्मिक लघु कथा के लिए हार्दिक बधाई
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