For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मेज़ के उपर सब कुछ शांत है , ( अतुकांत ) गिरिराज भंडारी

मेज़ के उपर सब कुछ शांत है

*************************

बड़ी सी मेज , साफ मेजपोश

ताज़े फूलों के गुलदस्तों सजी

करीने से लगी कुर्सियाँ

 

अदब से बैठे हुये अदब की चर्चा मे मशगूल

सभ्यता और संस्कृति की जीती जागती मूर्तियाँ

सामाजिक बुराइयों से लड़ते जो कभी न थके

सामाजिक उन्नति के नये-नये मानक गढ़ते 

सब कुछ कितन भला लग रहा है , मेज के ऊपर

सामान्यतया क़रीब से देखने में

लेकिन ,

जो दूर बैठा है उस मेज से

देख सकता है ,सब कुछ सही सही 

वो देख पाता है

मेज के नीचे की सच्चाइयाँ भी, क्योंकि

सही अवलोकन के लिये निश्चित दूरी भी ज़रूरी  है

वो देख सकता है ,एक दूसरे से अड़ते – भिड़ते पैर

कुर्सियों से गिराने के होते प्रयास

पैरों के नाखूनों से दूसरे के खरोंचे जाते पैर

पिंडलियों तक लहूलुहान कई पाँव

और निर्विकार से गंभीर चर्चा मे गुम हुए कुछ चेहरे

क्योंकि मर्यादा ज़रूरी है  

जानते सब हैं , सब कुछ हैं

पर कहता कोई नहीं ,

ऊपर सब कुछ मर्यादित है

 

शायद उत्कट अभिलाषायें आवाज़ें छीन लेतीं हैं , केवल आवाजें ! बस !

इसीलिये मेज़ के ऊपर सब कुछ शांत है

अच्छा है सब कुछ

लेकिन कब तक ?

******************

मौलिक एवँ अप्रकाशित

Views: 583

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 5, 2014 at 5:25pm

आदरणीय विजय मिश्र भाई , आपकी उपस्थिति ने मेरी रचना का मान और मेरा उत्साह दोनो बढ़ा दिया ॥ आपकी सराहना के लिये आपका हृदय से आभारी हूँ ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 5, 2014 at 5:23pm

आदरणीय लक्ष्मण प्रसाद भाई , रचना के अनुमोदन के लिये आपका तहे दिल से शुक्रिया ॥

Comment by विजय मिश्र on August 5, 2014 at 1:39pm
सुंदर ,गिरिराज भाई ,बहुत सुंदर - " शायद उत्कट अभिलाषायें आवाज़ें छीन लेतीं हैं .......... |"
Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on August 5, 2014 at 12:16pm

जब तक सामाजिक स्तर पर अन्दर और बाहर या ऊपर ओर नीचे के कर्त्यों का अंतर चलता रहेगा तब तक संस्कारित लोग 

इस तथाकथित शान्ति और विकास से विचलित होते रहेंगे | सुन्दर रचना हुई है | हार्दिक बधाई श्री गिरिराज भंडारी जी |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 5, 2014 at 11:11am

आदरणीय लक्ष्मण भाई , आपका आभार ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 5, 2014 at 11:10am

आदरनीय सौरभ भाई , आपकी प्रतिक्रिया से लगा कि कुछ सार्थक कह पाया, स्नेह बनाये रखें , सराहना के लिये आपका आभारी हूँ ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 5, 2014 at 10:56am

बहुत उम्दा


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 5, 2014 at 1:22am

जिन आँखों ने मेज़ के ऊपर, मेज़ के नीचे का सारा का सारा मंजर देख रखा है, वो मेज़ के ऊपर व्यापी हुई शांति के महाझूठ से विचलित न होंगी तो और कौन होगा ? लेकिन यह रचनाकार का दायित्व है कि वह आँखों को और अधिक विचलित होने से रोके, उन्हें भरोसे में ले. कि, जो दिखता है और जो हो रही हैं, वो क्रियाएँ हैं. उन क्रियाओं की प्रतिक्रियाएँ किसी चर्चा ही नहीं पूरे के पूरे मेज़ को ही उलट दिया करती है.

बिम्बों का इतना सुन्दर निर्वहन हुआ है कि रचना सहज ही स्वीकृत होती चली जाती है.  इस उत्कृष्ट रचना के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय

सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 4, 2014 at 10:49pm

आदरनीया महिमा श्री जी , रचना की सराहना के लिये आपका आभारी हूँ ॥

Comment by MAHIMA SHREE on August 4, 2014 at 9:46pm

जो दूर बैठा है उस मेज से

देख सकता है ,सब कुछ सही सही 

वो देख पाता है

मेज के नीचे की सच्चाइयाँ भी, क्योंकि

सही अवलोकन के लिये निश्चित दूरी भी ज़रूरी  है

वो देख सकता है ,एक दूसरे से अड़ते – भिड़ते पैर

कुर्सियों से गिराने के होते प्रयास

पैर के नाखूनों से दूसरे के खरोंचे जाते पैर

पिंडलियों तक लहूलुहान कई पाँव

और निर्विकार से गंभीर चर्चा मे गुम कुछ चेहरे...बढ़िया बहुत -२ बधाई ...आपको सादर 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"सभी अशआर बहुत अच्छे हुए हैं बहुत सुंदर ग़ज़ल "
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

पूनम की रात (दोहा गज़ल )

धरा चाँद गल मिल रहे, करते मन की बात।जगमग है कण-कण यहाँ, शुभ पूनम की रात।जर्रा - जर्रा नींद में ,…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी

वहाँ  मैं भी  पहुंचा  मगर  धीरे धीरे १२२    १२२     १२२     १२२    बढी भी तो थी ये उमर धीरे…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , उत्साह वर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार "
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"आ.प्राची बहन, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार।"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"कहें अमावस पूर्णिमा, जिनके मन में प्रीत लिए प्रेम की चाँदनी, लिखें मिलन के गीतपूनम की रातें…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"दोहावली***आती पूनम रात जब, मन में उमगे प्रीतकरे पूर्ण तब चाँदनी, मधुर मिलन की रीत।१।*चाहे…"
Saturday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"स्वागतम 🎉"
Jul 12
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

१२२/१२२/१२२/१२२ * कथा निर्धनों की कभी बोल सिक्के सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के।१। * महल…See More
Jul 10
Admin posted discussions
Jul 8
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Jul 7
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
Jul 7

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service