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पापा बिन ...........!!! (अतुकांत )

नित बैठी रहती हूँ उदास

हर पल आती पापा की याद

सावन में सखियाँ जब

ले कर बायना आती हैं

नैहर की चीजें दिखा-दिखा

इतराती हैं,

तब भर आता है दिल मेरा

पापा की कमी रुलाती है

कहती हैं जब, वो सब सखियाँ

पापा की भर आयीं अंखिया

मेरे बालों को सहलाया था

माथा चूम दुलराया था

सुनती हूँ जब उनकी बतिया

व्यकुल हो गयी मेरी निदिया

मन अधीर हो जाता है

पापा को बहुत बुलाता है

पर खुश देख सखी को

हल्का करतीं हूँ मन को

सज जाती है होठो पर

यादों की पीर

नैनो  से आज फिर छलक आयी

बहती सी नीर

जीवन का रंग कितना

बदल जाता है

पापा बिन सावन का

इक तीज-त्यौहार न भाता है ||

मीना पाठक 

मौलिक अप्रकाशित 

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Comment

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Comment by Meena Pathak on August 9, 2014 at 3:44pm

आदरणीय आशुतोष जी सही कहा आपने ....रचना सराहने हेतु बहुत बहुत आभार 

Comment by Meena Pathak on August 9, 2014 at 3:43pm

प्रिय कल्पना बहुत बहुत आभार ..सस्नेह 

Comment by Neeraj Nishchal on August 8, 2014 at 11:19pm
बहुत खूबसूरत आदरणीया मीना जी
Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on August 8, 2014 at 1:52pm

बहुत सुंदर भावपूर्ण रचना, आदरणीया मीना दीदी. बधाई आपको

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 8, 2014 at 12:31pm

मीना जी

बड़ी ही भावपूर्ण रचना है  i आपको बधाई i

Comment by Dr Ashutosh Mishra on August 8, 2014 at 7:20am

aadarneeyaa meena jee ..betiyon ko pita se bishes lagaav hota hai betiyon ke liye pita kee yadon me kho jaana atyant sahaj hai ..in bhabon ka bakhoobee chitran kiya hai aapne aapko dher saaree badhaaayee saadar 

Comment by kalpna mishra bajpai on August 7, 2014 at 8:54pm

अपने स्नेही जनों की याद दिलाती आप की रचना ने भावुक कर दिया । दी आप को हार्दिक बधाई /सादर 

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