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bahutबहुत खूब , यथार्थ चित्रण
दुखद सच लेकिन बढ़िया लघुकथा ! जीवनदान भी इस बेरोजगारी पर भारी पड़ रहा है, कितना दुखदायी है |
सुन्दर लघुकथा के लिए बधाई आदरणीय रवि प्रभाकर जी |
बहुत ही मार्मिक प्रस्तुति आदरणीय हार्दिक बधाई आपको
दिल को झकझोरती लघुकथा हेतु बधाई आदरणीय
बहुत ही बढ़िया लघुकथा. इंसानी आवश्यकताएं या विवशता भी उसे क्या कुछ नही सोचने पर मजबूर कर देती है. बहुत -२ बधाई आपको आदरणीय रवि जी
अपने जिन्दा होने का पछतावा , ऐसा माता , पिता ही कर सकते है अपने बच्चों के लिए | बहुत संवेदनशील विषय पर एक सुन्दर कहानी प्रस्तुत की आपने , बहुत बहुत बधाई |
आदरणीय रवि प्रभाकर जी,
जिंदा होने के गम को आपने बखुबी सामने रखा है. सुन्दर कथा.
सादर.
पुत्र मोह में पिता अपनी जान तक देने को तैयार रहते हैं पर बच्चे !!! बहुत कुछ कहती है ये कहानी ,पिता को तो अपने जीवित होने का अफ़सोस हो ही रहा था बेटे बहु के दिल में भी क्या ऐसा ही कुछ चल रहा होगा ....
सुन्दर कहानी ...बधाई आपको आ० रवि प्रभाकर जी
मार्मिक
जिदा बच जाने का पछतावा ---? काश बच्चे इस दर्द को समझते !
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