‘ अकड़न ’
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जहाँ कहीं भी अकड़न है
समझ लेने दीजिये उसे
अगर वो ये सोचती है कि, दुनिया है , तो वो है
तो ये बात सही भी हो सकती है
और अगर वो ये सोचती है कि , वो है, इसलिए दुनिया है
तो फिर उसे देखना चाहिए पीछे मुड़कर
कि, कोई भी नहीं बचा है , ऐसी सोच रखने वालों में से
और दुनिया आज भी है ,
वैसे तो तुम्हारा होना बस तुम्हारा होना ही है , इससे ज्यादा कुछ नहीं
बस एक घटना घटी और तुम हो गए
एक और घटेगी , तुम नहीं रहोगे
तो पियो सरलता
आने दो तरलता , और बह जाने दो
फैल जाने दो ,
ता कि , दुनिया की पूरी सतह हो जाए आच्छादित
क्यों कि सरलता और तरलता ही फ़ैल सकती है, असीम
और हो जाने दो सार्थक
अपने होने की उस एक नगण्य घटना को ||
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मौलिक एवँ अप्रकाशित
Comment
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति आदरणीय गिरिराज जी ........... सादर
अति सुन्दर रचना.....सादर नमस्ते भैया
अकडन में विस्तार की संभावनाएं कहाँ...... अनंत विस्तार के लिए तो सरलता चाहिए तरलता चाहिए..... वाह बहुत खूबसूरत
अपने होने के उस एक नगण्य घटना को..................शायद यहाँ की किया जाना चाहिए
इस सुन्दर तार्किक प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई आदरणीय गिरिराज भंडारी जी
आपने बिलकुल सही कहा आदरणीय गिरिराज जी. तरलता और सरलता से जीवन को जिया जा सकता है. बहुत -२ बधाई आपको
और हो जाने दो सार्थक
अपने होने के उस एक नगण्य घटना को ||
मित्र - सुन्दर भाव निरूपण हेतु बधाई i
अति सुन्दर रचना हेतु सादर बधाई स्वीकारें आदरणीय गिरिराज जी
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