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नीर पनघट से भरना, बहाना गया
चाहतों का वो दिलकश जमाना गया
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दूरियाँ तो पटी यार तकनीक से
पर अदाओं से उसका लुभाना गया
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पेड़ आँगन से जब दूर होते गये
सावनों का वो मौसम सुहाना गया
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आ गये क्यों लटों को बिखेरे हुए
आँसुओं का हमारे ठिकाना गया
***
नाम उससे हमारा गली गाँव में
साथ जिसके हमारा जमाना गया
***
गंद शहरी जो गिरने लगी रोज अब
झील के तट परिंदों नहाना गया
***
( रचना - 11 दिसम्बर 2011 )
मौलिक और अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी ‘मुसाफिर’
Comment
" सुंदर गजल के लिए हार्दिक बधाई " |
बहुत सुन्दर गज़ल हुई आ० धामी भाई | सादर बधाई
पेड़ आँगन से जब दूर होते गये
सावनों का वो मौसम सुहाना गया
बहुत ही सुन्दर पंक्ति ... मन को झकझोरते भाव।
अगर हम अभी भी उतना ही ध्यान देते तो सावन का मौसम हमेशा सुहाना रहता।
प्रस्तुति के लिए बधाई ....
धामी जी
बहुत सुन्दर
नाम उससे हमारा गली गाँव में ------ वाह - वाह
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