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एक मैं ही तो गैर था -- डा० विजय शंकर

बाँट दीं खुशियाँ तमाम हमने
कोई दुआएं दे के ले गया
कोई दबाव बना के ले गया
सब अपने ही थे ,कोई गैर नहीं था ||
बाँट दीं खुशियाँ तमाम हमने
कोई आँखें झुका के ले गया
कोई आँखें दिखा के ले गया
सब अपने ही थे कोई गैर नहीं था ||
कोई हंस के मिलता था ,
कोई जल के मिलता था ,
कोई मिल के छलता था ,
कोई छल के मिलता था ,
सब अपने लिए मिलते थे ,
कोई मुझसे नहीं मिलता था ||
लोग , सच कुर्सी पसंद होते हैं
हर मिलने वाला मुझसे नहीं
कुर्सी से मिलता था ||
सब अपने थे कोई गैर नहीं था ||
एक बार भटकता हुआ
कोई गैर आ गया
दो बातें की और दिल पे छा गया ||
उस दिन पता चला मैं क्या था
मेरे पास क्या था
जो मैं बांटता था
सब तो उन्हीं का था ,
सब अपने ही थे , आपस में
एक मैं ही तो उनमें गैर था ॥
तभी तो मेरा नहीं किसी से
कभी भी कोई बैर था ॥

मौलिक एवं अप्रकाशित.
डा० विजय शंकर

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Comment by Dr. Vijai Shanker on August 25, 2014 at 3:27pm
आदरणीय नरेंद्र सिंह चौहान जी, रचना की प्रशस्ति के लिए धन्यवाद .
Comment by Dr. Vijai Shanker on August 25, 2014 at 3:25pm
आदरणीय लक्ष्मण प्रसाद धामी जी, हार्दिक बधाई के लिए ह्रदय से धन्यवाद .
Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 25, 2014 at 11:03am

आदरणीय भाई विजय शंकर जी , बहुत सुंदर अभिव्यक्ति हुई है लिए हार्दिक बधाई स्वीकारें।

Comment by Dr. Vijai Shanker on August 24, 2014 at 11:05pm
आदरणीय सविता मिश्रा जी , रचना को पसंद करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।
Comment by savitamishra on August 24, 2014 at 10:36pm

सब अपने लिए मिलते थे ,
कोई मुझसे नहीं मिलता था ||...यही सच जानते तो हैं पर इस कमबख्त दिल को भी मना लें तो दुःख हो ही न ......बहुत खुबसुरत रचना भैया ...सादर नमस्ते

Comment by Dr. Vijai Shanker on August 24, 2014 at 2:20pm

प्रिय शिज्जु शकूर जी , आपको रचना पसंद आई , बहुत अच्छा लगा , प्रशस्ति एवं बधाई के लिए धन्यवाद।

Comment by Dr. Vijai Shanker on August 24, 2014 at 2:11pm

आदरणीय मीना पाठक जी , आपको रचना पसंद आई , बहुत अच्छा लगा , बधाई के लिए धन्यवाद।

Comment by Dr. Vijai Shanker on August 24, 2014 at 2:08pm

प्रिय जीतेन्द्र जी , आपकी टिप्पड़ियाँ सटीक होती हैं , जीवन में बहुत कुछ है , लिखा जा सकता है , बहुत कुछ है जो नहीं लिखा जा सकता है। वास्तव में जीवन है तो एक रंगमंच ही , रोल ख़तम , किस्सा खत्म। फिर भी कुछ है जो बांटना चाहिए।
आपकी बधाई केलिए धन्यवाद।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on August 24, 2014 at 12:50pm

वाह बहुत खूब सर अच्छी भावाभिव्यक्ति हुई है बहुत बहुत बधाई आपको

Comment by Meena Pathak on August 24, 2014 at 12:46pm

कोई हंस के मिलता था ,
कोई जल के मिलता था ,
कोई मिल के छलता था ,
कोई छल के मिलता था ,
सब अपने लिए मिलते थे ,
कोई मुझसे नहीं मिलता था ||..........................बहुत सुन्दर ..सादर बधाई 

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