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रिश्ते उधड़े खुद ही सिलना सच कहता हूँ यारो मैं
औरों को मत रोते दिखना सच कहता हूँ यारो मैं
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अपना हो या बेगाना हो सुख में ही अपना होता
जब भी मिलना हॅसके मिलना सच कहता हूँ यारो मैं
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चाहे भाये कुछ पल लेकिन आगे चलकर दुख देगा
उम्मीदों से जादा मिलना सच कहता हूँ यारो मैं
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दुख से सुख का सुख से दुख का मौसम जैसा नाता है
हर मौसम को अपना कहना सच कहता हूँ यारो मैं
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दौलतदां हो इक सिक्के की कीमत को मत बिसराना
हर सिक्के को अपना रखना सच कहता हूँ यारो मैं
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जब मौसम हो हरियाली का चाहे छुपना काटों सा
पतझड़ में फूलों सा खिलना सच कहता हूँ यारो मैं
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मंदिर में चढ़ने से जादा चाहे जो चढ़ना शव पर
ऐसी कलियों पर मर मिटना सच कहता हूँ यारो मैं
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( रचना 24 अगस्त 2014 )
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मौलिक और अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी ‘मुसाफिर’
Comment
आदरणीय भांई गुमनाम जी गजल की प्रषंसा के लिए हार्दिक आभार
बढ़िया ग़ज़ल कही है बधाइयाँ,,,,,,,,,,,,,,,,
आ० महिमा जी , ग़ज़ल की प्रशंसा के लिए बहुत बहुत आभार .
आदरणीय भाई गिरिराज जी, गजल पर आपकी उपस्थिति से इसका मान बढ़ा है इसके लिए हार्दिक आभार ।
आदरणीय भाई, आषुतोष जी गजल पर आपकी विस्तृत प्रतिक्रिया और स्नहाशीष के लिए हार्दिक आभार ।
आदरणीय भाई गोपाल नाराणन जी , आपने अपनी प्रतिक्रिया से गजल की प्रशंसा करते हुए मुझे जो असीमित मान दिया है उसके लिए हार्दिक धन्यवाद । अभी मेरी लेखनी इतनी परिपक्व नहीं हुई है कि आप जैसे विद्वजन मेरी ओर फरियादियों की तरह देखो । मुझ जैसे लेखकों को तो आप जैसे प्रबुद्धजनों का स्नेहभरा मार्गदर्शन चाहिए । जिससे बेहतर से बेहतर लिखकर साहित्यसेवा कर सकूं । स्नेह बनाए रखें यही कामना है ।
आदरणीय भाई विजय शंकर जी उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार ।
आदरणीय भाई नरेंद्रसिह जी, गजल का अनुमोदन कर उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद ।
रिश्ते उधड़े खुद ही सिलना सच कहता हूँ यारो मैं
औरों को मत रोते दिखना सच कहता हूँ यारो मैं.... शानदार...हर अशआर उम्दा है .. हार्दिक बधाई आपको
आदरणीय लक्ष्मण भाई , बढ़िया ग़ज़ल कही है , आपको दिली बधाइयाँ |
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