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रिश्ते उधड़े खुद ही सिलना सच कहता हूँ यारो मैं
औरों को मत रोते दिखना सच कहता हूँ यारो मैं
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अपना हो या बेगाना हो सुख में ही अपना होता
जब भी मिलना हॅसके मिलना सच कहता हूँ यारो मैं
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चाहे भाये कुछ पल लेकिन आगे चलकर दुख देगा
उम्मीदों से जादा मिलना सच कहता हूँ यारो मैं
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दुख से सुख का सुख से दुख का मौसम जैसा नाता है
हर मौसम को अपना कहना सच कहता हूँ यारो मैं
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दौलतदां हो इक सिक्के की कीमत को मत बिसराना
हर सिक्के को अपना रखना सच कहता हूँ यारो मैं
***
जब मौसम हो हरियाली का चाहे छुपना काटों सा
पतझड़ में फूलों सा खिलना सच कहता हूँ यारो मैं
***
मंदिर में चढ़ने से जादा चाहे जो चढ़ना शव पर
ऐसी कलियों पर मर मिटना सच कहता हूँ यारो मैं
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( रचना 24 अगस्त 2014 )
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मौलिक और अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी ‘मुसाफिर’
Comment
दुख से सुख का सुख से दुख का मौसम जैसा नाता है
हर मौसम को अपना कहना सच कहता हूँ यारो मैं
दौलतदां हो इक सिक्के की कीमत को मत बिसराना
हर सिक्के को अपना रखना सच कहता हूँ यारो मैं
मंदिर में चढ़ने से जादा चाहे जो चढ़ना शव पर
ऐसी कलियों पर मर मिटना सच कहता हूँ यारो मैं..आदरणीय लक्ष्मण जी इस बेहतरीन ग़ज़ल के इन शेरो के लिए बिशेष रूप से बधाई स्वीकार करें ..सादर
धामी जी
गजल हसींन है वादियों की तरह i
हम देखते है फरियादियो की तरह ii
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