समस्त गुरुओं को सादर प्रणाम के साथ
2122 2122 2122 22/112
रास्ता रब का हमें जिसने दिखाया यारों
कह गुरु उसको है सर हमने झुकाया यारों
ज्ञान दीपक से किया जिसने जहाँ को रोशन
फन भी जीने का हमें उसने सिखाया यारों
भेद मजहब में कभी उसने किया ही है नहीं
पाठ उल्फत का ही कौमों को पढ़ाया यारों
नाम चाहे हो जुदा सब का है मालिक इक ही
गूढ़ बातों को सहज उसने बताया यारों
हाथ अन्दर से लगाकर चोट बाहर से करे
कच्ची मिट्टी को घड़ा ऐसे बनाया यारों
डगमगाए थे कदम जब भी मेरे तूफां में
हौसला देके गुरु ने ही चलाया यारों
जिन्दगी हम को लगी जब भी ग़मों में डूबी
दीप उम्मीदों को अंतस में जलाया यारों
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आदरणीय गोपाल सर ...आदरणीय गिरिराज भाईसाब ..आप सब का स्नेह और मार्गदशन मुझे सतत मिलता रहे ऐसी कामना करते हुए ...सादर धन्यवाद ..सादर प्रणाम
आदरणीय लक्षमण जी ...रचना पर आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए तहे दिल धन्यवाद सादर
आदरणीया महिमा जी ..आप सब की प्रेरणा से ही सतत लिखने की प्रेरणा मिलती है ..हौसला अफजाई के लिए तहे दिल धन्यवाद सादर
पवन जी रचना पर आपकी प्रतिक्रिया के लिए तहे दिल धन्यवाद ..सादर
आदरणीय भाई, आशुतोष जी बेहतरीन गजल हुई है हार्दिक बधाई प्रेषित है ।
जिन्दगी हम को लगी जब भी ग़मों में डूबी
दीप उम्मीदों को अंतस में जलाया यारों ... बहुत खूब हार्दिक बधाई
बहुत सुन्दर , समयानुकूल गजल कही है , आदरणीय आशुतोष भाई , दिली मुबारकबाद |
शिक्षक दिवस को ऐसी ही गजल की तलाश थी i
bahut khoob ..waah
राम कृष्ण से को बड़ा, उनहु तो गुरु कीन्ह।
तीन लोक के वे धनी, गुरु आगे आधीन।
हरि सेवा युग चार है, गुरु सेवा पल एक।
ताके पटतर ना तुलै, सन्तन किया विवेक।
बहुत सुन्दर रचना.. बधाई सादर
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