मेरे दिल से ये भी न पूछिए, कि जला कहाँ ये बुझा कहाँ,
जो शरर था आग़ था ख़ाक है लगी इसको ऐसी हवा कहाँ.
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कई संग उठे हैं मेरी तरफ़, कई उँगलियाँ मेरी ओर हैं,
जो सज़ा मिली है गुनाह की वो गुनाह मैंने किया कहाँ.
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मेरे लडखडाने की देर है, मुझे मयपरस्त कहेंगे सब,
उन्हें क्या पता मुझे इश्क़ है, कभी जाम मैंने छुआ कहाँ.
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जो ख़ुदा कहे यहीं जम रहूँ, जो इशारा हो अभी चल पडूँ,
ये जो वक़्त है ये घड़ी का है, ये कभी किसी का हुआ कहाँ.
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ये सदाएँ हैं मेरी आहों की मेरी ग़ज़लें तेरी अदाएँ हैं,
मेरे आंसुओं की लक़ीरें हैं कोई शेर मुझ से बना कहाँ.
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ज़रा पलकों का ये वरक़ हटा, कभी आँखों में भी तो झाँक ले,
ये क़सीदे हैं तेरी शान में, अभी तू ने इनको पढ़ा कहाँ.
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कभी शुहरतो की शराब थी, कभी हुस्न हुस्न तिलिस्म थे,
मेरी मंज़िलो पे नज़र रही कोई जादू मुझ पे चला कहाँ
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वो भी सरफिरा मैं भी सरफिरा, वो भी नूर है मैं भी ‘नूर’ हूँ,
वो भी आईना मैं भी आईना, वो भी खुल के मुझ से मिला कहाँ.
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निलेश "नूर"
Comment
शुक्रिया गुमनाम जी, नरेन्द्र सिंह जी, सारथि जी, डॉ. गोपाल नारायण जी, उमेश जी, सौरभ सर, डॉ. आशुतोष मिश्र जी, आ. गिरिराज जी.
बस इसी दाद के लिए हर कवि और शायर रचता है ...यही उसकी सांसों का ईंधन है ..
कोटिश: धन्यवाद
शुक्रिया आ. श्याम नारायण जी
आदरनीय नीलेश भाई , हर शे र बेमिसाल है , पूरी गज़ल के लिये दिली बधाइयाँ स्वीकार करें ।
आदरणीय नूर जी कल इस रचना को पढ़ा था आज मेरा मन बरबस फिर यहाँ आ गया ..कई बार गुनगुनाया ..वाकई कमाल की ग़ज़ल
हर शेर पर अलग-अलग दाद ...
मगर ये तो इनमें भी विशेष -
ये सदाएँ हैं मेरी आहों की मेरी ग़ज़लें तेरी अदाएँ हैं,
मेरे आंसुओं की लक़ीरें हैं कोई शेर मुझ से बना कहाँ.
मक्ता भी वाह वाह ! .. दिल से बधाई, आदरणीय
अगर इक्जामनर होता
तो नंबर दस में दस देता
नजाकत के अलग देता
लियाकत के अलग देता ----------संग्रहणीय गजल है i
सभी साथियो का दिल से शुक्रिया ..
शानदार जनाब वाहहहहहह
क्या शानदार ग़ज़ल हुई है जनाब , माशा-अल्लाह ! दिली दाद कुबूल फरमायें ... :)
आदरणीय नूर जी .आपकी एक और बेहतरीन ग़ज़ल ..रूमानियत से भरी इस ग़ज़ल के हर शेर पर मेरी तरफ से हार्दिक बधाई सादर
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