(1)
मोहक वन
सरि की कलकल
बहका मन
(2)
कोयल प्यारी
नित कूँ कूँ करती
जान हमारी
(3)
कार्तिक मास
झूम रही धरती
बुझेगी प्यास
(4)
यात्रा में रेल
दौड़ता सबकुछ
लगता खेल
(5)
मनवा भावे
सुन्दर है नईया
वायु हिलोर
"मौलिक व अप्रकाशित"
Comment
आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सादर अभिवादन, हाइकु की सराहना व उत्साहवर्धन हेतु हार्दिक आभार!
इस सुगढ़ प्रयास केलिए बधाई.. .
आदरणीय डा0 गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी सादर अभिवादन, आपने रचना पे समय दिया इसके लिए बहुत बहुत धन्यवाद. आपके बताए अनुसार अन्तिम हाइकु सही कर ले रहा हूँ.
मार्गदर्शन हेतु हार्दिक आभार!
आदरणीय लक्ष्मण रामानुज जी सादर अभिवादन, उत्साहवर्धन हेतु हार्दिक आभार!
आदरणीय गिरिराज भण्डारी जी सादर अभिवादन, प्रोत्साहन हतु हार्दिक आभार!
प्रिय पवन
आपने सुन्दर रचना की है i अंतिम हायकू में-- सुन्दर है नईया /पार लगावे में नाव का सम्बन्ध पार लगाने से है जबकि हायकू में सभी पंक्तिया स्वतंत्र होती हैं I यदि ऐसा करें -मनवा भावे
सुन्दर है नईया
वायु हिलोर ------------------------- सस्नेह i
सुंदर हाइकु रचे है | बधाई श्री पवन कुमार जी
बहुत खूब ! भाई पवन जी , बधाई इन हाइकु के लिये ।
आदरणीय सुशील सरना जी सादर अभिवादन, प्रोत्साहन हेतु हार्दिक आभार!
आदरणीय श्याम नरायन वर्मा जी सादर अभिवादन, आपने रचना पर समय दिया इसके लिए बहुत बहुत धन्यवाद, हार्दिक आभार!
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