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तन्हा प्याला .....

तन्हा प्याला  ....

रजकण हूँ मैं प्रणय पंथ का
स्वप्न लोक का बंजारा
हार के भी वो जीती मुझसे
मैं जीत के हरदम ही हारा
नयन सिंधु में छवि है उसकी
वो तृषित मन की मधुशाला
प्रणयपाश एकांत पलों का
मन में जीवित ज्यूँ हाला
गीत कंठ के सूने उस बिन
रैन चांदनी बनी ज्वाला
नयन देहरी पर सजूँ मैं उसकी
हृदय में है ये अभिलाषा
अपने रक्तभ अधरों की मधु बूँद से
जो भर दे मेरा तन्हा प्याला 

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Sushil Sarna on November 5, 2014 at 6:03pm

आदरणीय  pooja yadav  जी रचना पर आपकी प्रशंसा का हार्दिक आभार। 

Comment by Sushil Sarna on November 5, 2014 at 6:02pm

आदरणीय Dr. Vijai Shanker जी रचना पर आपकी आत्मीय प्रशंसा का हार्दिक आभार। 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 5, 2014 at 4:58pm

सुन्दर भाव युक्त रचना i  बधाई हो i


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on November 5, 2014 at 2:33pm

उम्दा प्रस्तुति आ० सुशील सरना जी.

Comment by pooja yadav on November 5, 2014 at 11:55am
बहुत ही उम्दा।
Comment by Dr. Vijai Shanker on November 5, 2014 at 1:14am

अपने रक्तभ अधरों की मधु बूँद से
जो भर दे मेरा तन्हा प्याला
क्या खूब अभिलाषा है , छोटी सी , बधाई , गीत बहुत आकर्षक है ,
आदरणीय सरना जी।

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