तन्हा प्याला ....
रजकण हूँ मैं प्रणय पंथ का
स्वप्न लोक का बंजारा
हार के भी वो जीती मुझसे
मैं जीत के हरदम ही हारा
नयन सिंधु में छवि है उसकी
वो तृषित मन की मधुशाला
प्रणयपाश एकांत पलों का
मन में जीवित ज्यूँ हाला
गीत कंठ के सूने उस बिन
रैन चांदनी बनी ज्वाला
नयन देहरी पर सजूँ मैं उसकी
हृदय में है ये अभिलाषा
अपने रक्तभ अधरों की मधु बूँद से
जो भर दे मेरा तन्हा प्याला
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय pooja yadav जी रचना पर आपकी प्रशंसा का हार्दिक आभार।
आदरणीय Dr. Vijai Shanker जी रचना पर आपकी आत्मीय प्रशंसा का हार्दिक आभार।
सुन्दर भाव युक्त रचना i बधाई हो i
उम्दा प्रस्तुति आ० सुशील सरना जी.
अपने रक्तभ अधरों की मधु बूँद से
जो भर दे मेरा तन्हा प्याला
क्या खूब अभिलाषा है , छोटी सी , बधाई , गीत बहुत आकर्षक है ,
आदरणीय सरना जी।
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