For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कोई इसे नहीं पढ़ेगा

विकृत मस्तिष्क की

उथल पुथल को

तुम क्यों लिखते हो

किसे फ़साने के लिए

ये शब्द-जाल बुनते हो

आड़ी तिरछी रेखायें खींच

छिपा सके न

कुरूपता स्वंय की

अब किसे रिझाने को

व्यर्थ उसमें रंग भरते हो

सावधान अब कुछ मत लिखना

जो लिखा है उसे जला देना

तुम्हारा लिखा नहीं छपेगा

कोई इसे नहीं पढ़ेगा

© हरि प्रकाश दुबे

"मौलिक व अप्रकाशित”

Views: 496

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Hari Prakash Dubey on November 19, 2014 at 6:57pm

"Management  by exception"..हा ..हा... हा आपका हार्दिक आभार आदरणीय लक्ष्मण रामानुज जी !

Comment by Hari Prakash Dubey on November 19, 2014 at 6:54pm

आपकी आत्मीय प्रतिक्रिया एवं प्रोत्साहन के लिए आपका हार्दिक आभार आदरणीय योगराज प्रभाकर जी

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on November 19, 2014 at 11:12am

तुम्हारा लिखा नहीं छपेगा

कोई इसे नहीं पढ़ेगा--------- वाह !  एक सिद्धांत है "अपवाद का सिद्धांत "Management  by exception" देखिये छप भी गया और 

                                   सब पढ़ भी रहे है | कुशल व्यक्ति ही ऐसा कर सकते है | बहुत बहुत बधाई 


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on November 19, 2014 at 11:00am

आपकी रचनाएँ प्रौढ़ता की तरफ बढ़ रही हैं, अच्छा लगा।

Comment by Hari Prakash Dubey on November 16, 2014 at 7:31pm

आपकी आत्मीय प्रतिक्रिया का हार्दिक आभार आदरणीय राजेश कुमारी जी !


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 16, 2014 at 7:00pm

बहुत खूब मन की खिन्नता में बुना शब्दों का ऐसा जाल कि सभी खिंचे चले आयें ये एक रचना कार की कुशलता का ही परिचायक है

बहुत सुन्दर  हार्दिक बधाई 

Comment by Hari Prakash Dubey on November 16, 2014 at 12:26pm

आपका हार्दिक आभार आदरणीय 

डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव सर

सादर प्रणाम !

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 16, 2014 at 12:18pm

हरि प्रकाश जी

कभी कभी वही पठ्नीय  होता है जिसे हम अपठनीय समझते है i इसका उल्टा भी  होता है i मार्गदर्शक एक छोटा सा भाव अभिव्यक्ति पाकर मुखर हो उठा है i  सादर i

Comment by Hari Prakash Dubey on November 16, 2014 at 10:27am

इस रचना  पर प्रतिक्रिया  के लिए आपका हार्दिक आभार सोमेश कुमार जी , आप भी ये मानते होंगे की हर रचना कभी मन की कल्पना और कभी दूसरे व्यक्तियों ,परिस्तिथियों को देखकर जन्म लेती है ,यहाँ रचना का छपना महत्त्वपूर्ण नहीं है !

साभार

हरि प्रकाश दुबे 

Comment by somesh kumar on November 16, 2014 at 10:04am

हर तारा ध्रुव -तारा नहीं होता 

हर नाव का किनारा नहीं होता 

जो तुम्हारी आँख का तारा हो 

वो हर किसी का प्यारा नहीं होता |

परंतु मित्र ,सिर्फ इस उद्देश्य के लिए लिखना की सब आप के विचारों से सहमत हों ,लेखनी को बंधक बनाता है ,विविधता जीवन का सत्य है इसलिए वैचारिक-विविधता का मिलना स्वभाविक है ,जो आप की तरह विचार करेगा वह अवश्य सहमत होगा ,पढ़ेगा |

अंत में यही लिखना चाहूँगा -कर्म किए जा |

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna posted blog posts
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Nov 2
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Nov 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Oct 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Oct 31
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Oct 31
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
Oct 31

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service