हर क़दम पर मात खाकर रह गई,
जिंदगी सर को झुका कर रह गई.
देख लो पहचान मेरी हो जुदा,
एक खुदसर में समाकर रह गई.
होगी मलिका सल्तनत की वो मगर,
मेरी खातिर कसमसा कर रह गई.
रूह मुझसे जाँ छुड़ाने के लिए,
हर दफा बस छटपटा कर रह गई.
सोजे दिल पानी से भी ना बुझ सके,
आंख भी आंसू बहा कर रह गई.
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
रूह मुझसे जाँ छुड़ाने के लिए,
हर दफा बस छटपटा कर रह गई.---क्या कहने
बहुत बढ़िया ग़ज़ल हुई इमरान भाई जी बहुत बहुत बधाई
//रूह मुझसे जाँ छुड़ाने के लिए,
हर दफा बस छटपटा कर रह गई.//
वाह वाह, कमाल की ग़ज़लगोई करते है इमरान भाई, सभी अशआर अच्छे लगें, बधाई स्वीकार करें।
इमरान भाई
आपने बहुत बेहतरीन कहा i बधाई i
शानदार प्रस्तुति इमरान भाई ,बहुत बहुत बधाई !
दुनिया हर बार दीवार उठाती आई /मोहब्बत हर बार दीवार गिराती आई | सुंदर गज़ल तीसरे और अंतिम शे'र विशेष पसंद आए |
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