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कुछ लिखना चाहता हूँ

पर सोचता हूँ क्या लिखूं 

कलम जब होती है हाथ में

दिल करता है कुछ सांय-सांय

सोचता हूँ

पुण्य लिखूं

सेवा लिखूं, सम्मान लिखू

हाथ से फिसलता आसमान लिखूं

सत्य लिखूं , प्रेम लिखूं

ममता लिखूं , मौन-व्यापार लिखूं

किसी उजड़ी बस्ती का हाहाकार लिखूं

पाप लिखूं, शाप लिखूं

मन का परिमाप लिखूं

भूख लिखूं , स्वार्थ लिखूं

टी वी से झांकता

आधुनिक परमार्थ लिखूं 

थाना लिखूं, जेल लिखूं

खूनी राजनीति के सौ-सौ खेल लिखूं

गीत लिखूं ,प्रीति लिखूं

कवि का संभाव्य लिखूं

सांवले क्षितिज पर

काल का काव्य लिखूं

पोथी लिखूं, भेद लिखूं

पाश्चाताप खेद लिखूं

या नए युग का

कोई एक वेद लिखूं

 

मै अकेला नहीं लिखता

एक बड़ी जमात है

लिख रहा है युगों से

लिखेगा युगो तक

पर आज मेरा और सबका

हाथ कांपता है

जब कोई कहता है

हाँ, लिखो

आदमी  !

(मौलिक/अप्रकाशित )

 

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Comment

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 12, 2014 at 10:53pm

आपने सोचते सोचते सब कुछ लिख दिया ...वाह शानदार अभिव्यक्ति ,रचना के अंतिम चरण ने तो रचना को बहुत ऊँचाइयाँ बख्शी हैं 

बहुत बहुत बधाई आपको आदरणीय. 

Comment by somesh kumar on December 12, 2014 at 7:32am

मन में तूफान थे मेरे सैकड़ों 

बस कागजों से किनारा मिल ना सका 

मैं दबाए हुए था सहस्त्र रश्मियाँ 

बस मनचाहा सितारा मिल ना सका 

हृदय की धरा पे थे कई पुष्प-बीज 

पर सुगन्धियों भर पुष्प खिल ना सका 

जो भी आप ने लिखा वो सभी लिखने वालों की मनोव्यथा है आदरणीय 

Comment by Dr. Vijai Shanker on December 12, 2014 at 3:05am
कहने को बहुत कुछ है ,
बस हम कह नहीं पाते ,
लिखने को क्या नहीं है
बस हम लिख नहीं पाते ॥
बहुत ही भावपूर्ण गंभीर अभिव्यक्ति , बधाई आदरणीय डॉo गोपाल नारायण जी। सादर।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 12, 2014 at 12:05am

मै अकेला नहीं लिखता

एक बड़ी जमात है

लिख रहा है युगों से

लिखेगा युगो तक

पर आज मेरा और सबका

हाथ कांपता है

जब कोई कहता है

हाँ, लिखो

आदमी  !

नमन इस रचना के लिए और बधाई आपको 

Comment by Naval Kishor Soni on December 11, 2014 at 10:44pm

bahut sunder sir----------congratulation.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on December 11, 2014 at 8:15pm

आदरणीय डॉ गोपाल नारायण सर आपकी कलमकारी को नमन है जिस तरह की रचना आप जैसे अनुभवी व्यक्ति के कलम से ही निकल सकती है यूँ लगता है सारे विषयों को आपने बस एक पन्नें में समेट दिया है। सादर बधाई आपको।

Comment by Meena Pathak on December 11, 2014 at 6:08pm

सर..मैं भी कलम दांतों में दबाये सोचती हूँ क्या लिखूँ ...................अद्भुत रचना | सादर बधाई 

कृपया ध्यान दे...

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