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बाल कविता : गुड्डो-दादी --संजीव 'सलिल'

बाल कविता :
गुड्डो-दादी
संजीव 'सलिल'
*

गुड्डो नन्हीं खेल कूदती.
खुशियाँ रोज लुटाती है.
मुस्काये तो फूल बरसते-
सबके मन को भाती है.
बात करे जब भी तुतलाकर
बोले कोयल सी बोली.
ठुमक-ठुमक चलती सब रीझें
बाल परी कितनी भोली.

दादी खों-खों करतीं, रोकें-
टोंकें सबको : 'जल्द उठो.
हुआ सवेरा अब मत सोओ-
काम बहुत हैं, मिलो-जुटो.
काँटें रुकते नहीं घड़ी के
आगे बढ़ते जायेंगे.
जो न करेंगे काम समय पर
जीवन भर पछतायेंगे.'

गुड्डो आये तो दादी जी
राम नाम भी जातीं भूल.
कैयां लेकर, लेंय बलैयां
झूठ-मूठ जाएँ स्कूल.
यह रूठे तो मना लाये वह
वह गाये तो यह नाचे.
दादी-गुड्डो, गुड्डो-दादी
उल्टी पुस्तक ले बाँचें.
*********************
दिव्यनर्मदा.ब्लागस्पाट.कॉम
सलिल.संजीव@जीमेल.कॉम

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मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on June 9, 2010 at 10:27am
दादी खों-खों करतीं, रोकें-
टोंकें सबको : 'जल्द उठो.
हुआ सवेरा अब मत सोओ-
काम बहुत हैं, मिलो-जुटो.
काँटें रुकते नहीं घड़ी के
आगे बढ़ते जायेंगे.
जो न करेंगे काम समय पर
जीवन भर पछतायेंगे.'

परम आदरणीय श्रध्येय आचार्य संजीव "सलिल" जी , सादर अभिवादन , बहुत ही सुंदर बाल गीत रचा है आपने , प्रथम और तृतीय पीढ़ी के मेल को जिस सहजता से आपने प्रदर्शित किया है वो काबिले गौर है, बहुत ही खुबसूरत रचना,धन्यबाद,

प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on June 7, 2010 at 8:17pm
आदरणीय संजीव सलिल जी, बहुत अरसे के बाद इतनी सुंदर बाल कविता पढने का मौका मिला ! नहुत ही कोमल और मासूम रचना है आपकी ! ऐसे स्तरीय बाल साहित्य की आज बड़ी शिद्दत से कमी महसूस की जा रही है ! मुझे जिस बात ने सब से ज्यादा प्रभावित किया वो है कविता के केन्द्रीय चरित्र का एक लड़की होना ! गुड्डो के नाम के माध्यम से आपने हमारे समाज में लड़किओं के प्रति पूर्व-धारणायों और कन्या भ्रूण हत्या जैसे घिनौने अपराध पर अपरोक्ष रूप में बड़ी करारी चोट की है ! इस सार्थक काव्य कृति के लिए में आपको सादर साधुवाद देता हूँ !
Comment by PREETAM TIWARY(PREET) on June 7, 2010 at 6:55pm
bahut badhiya likha hai aapne aacharya jee........main aapka bahut dino se fan hoon aur main bahut dino se follow me hoon..aur intezaar kar raha tha ki kab aapki rachna padhne ko mile,,,,,aur wo saubhagya bhi mujhe mil gaya,....

bahut bahut dhanybaad aacharya jee
Comment by sanjiv verma 'salil' on June 7, 2010 at 10:38am
apka abhar.
Comment by Admin on June 7, 2010 at 10:05am
गुड्डो आये तो दादी जी
राम नाम भी जातीं भूल.
कैयां लेकर, लेंय बलैयां
झूठ-मूठ जाएँ स्कूल.
यह रूठे तो मना लाये वह
वह गाये तो यह नाचे.
दादी-गुड्डो, गुड्डो-दादी
उल्टी पुस्तक ले बाँचें.

आचार्य संजीव "सलिल" जी प्रणाम, सर्वप्रथम ओपन बुक्स ऑनलाइन पर पोस्ट आपकी पहले ब्लॉग का ह्रदय से स्वागत करते है, बहुत ही भावनात्मक और बालपन और बुजुर्ग मन (जो लगभग बालपन जैसा ही हो जाता है ) को एक साथ समेटे हुए बहुत ही सुंदर कविता लिखे है, बहुत ही अच्छी अभिव्यक्ति है , आगे भी आपकी कविताओ का सिद्दत से इन्तजार रहेगा,
आपका अपना ही ,
ADMIN
OBO

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