For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गीत : भाग्य निज पल-पल सराहूँ..... संजीव 'सलिल'

गीत :

भाग्य निज पल-पल सराहूँ.....

संजीव 'सलिल'

*

भाग्य निज पल-पल सराहूँ,

जीत तुमसे, मीत हारूँ.

अंक में सर धर तुम्हारे,

एक टक तुमको निहारूँ.....


नयन उन्मीलित, अधर कम्पित,

कहें अनकही गाथा.

तप्त अधरों की छुअन ने,

किया मन को सरगमाथा.

दीप-शिख बन मैं प्रिये!

नीराजना तेरी उतारूँ...



हुआ किंशुक-कुसुम सा तन,

मदिर महुआ मन हुआ है.

विदेहित है देह त्रिभुवन,

मन मुखर काकातुआ है.

अछूते प्रतिबिम्ब की,

अँजुरी अनूठी विहँस वारूँ...


बाँह में ले बाँह, पूरी

चाह कर ले, दाह तेरी.

थाह पाकर भी न पाये,

तपे शीतल छाँह तेरी.

विरह का हर पल युगों सा,

गुजारा, उसको बिसारूँ...



बजे नूपुर, खनक कँगना,

कहे छूटा आज अँगना.

देहरी तज देह री! रँग जा,

पिया को आज रँग ना.

हुआ फागुन, सरस सावन,

पी कहाँ, पी कँह? पुकारूँ...


पंचशर साधे निहत्थे पर,

कुसुम आयुध चला, चल.

थाम लूँ न फिसल जाए,

हाथ से यह मनचला पल.

चाँदनी अनुगामिनी बन.

चाँद वसुधा पर उतारूँ...



*****


चिप्पियाँ: गीत, श्रृंगार, नयन, अधर, चाँद, आँगन, किंशुक, महुआ

Acharya Sanjiv Salil


http://divyanarmada.blogspot.com

Views: 548

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by asha pandey ojha on June 11, 2010 at 5:36pm
bahut hee khub surat geet hai ..padh kar man aanndit hua
Comment by sanjiv verma 'salil' on June 9, 2010 at 11:40am
प्रीतम को कंचन करें, होकर सदय गणेश.
तिमिर प्रभाकर से डरे, है प्रताप अनिमेष..

आप सबका धन्यवाद.

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on June 9, 2010 at 8:42am
आचार्य जी प्रणाम , बहुत ही खुबसूरत और ससक्त रचना दिया है आपने , काफ़ी उम्द्दा रचना, बहुत बहुत धन्यबाद,
Comment by PREETAM TIWARY(PREET) on June 8, 2010 at 4:11pm
pranam aacharya jee.....
bahut hi badhiya rachna hai.....
bahut bahut dhanyabaad yahan humlogo ke beech post karne ke liye...
Comment by Kanchan Pandey on June 8, 2010 at 3:20pm
Bhav bihuval kar deney waali yey geet hai, bahut hi sunder,
Comment by Admin on June 8, 2010 at 12:13pm
नयन उन्मीलित, अधर कम्पित,
कहें अनकही गाथा.
तप्त अधरों की छुअन ने,
किया मन को सरगमाथा.
दीप-शिख बन मैं प्रिये!
नीराजना तेरी उतारूँ...

परम आदरणीय श्रद्धेय आचार्य संजीव "सलिल" जी शत शत नमन, आप जैसे पारस मणि को अपने बीच मे पाकर पूरा ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार धन्य हो गया, बहुत ही सुंदर गीत आपने लिखा है, इस गीत पर कोई भी टिप्पणी करना मेरे बस की बात नहीं है, फिर भी परंपरा को निभाते हुये मैं कुछ लिखने की हिम्मत जुटा पा रहा हू, बहुत ही खुबसूरत अभिव्यक्ति है, एक एक पक्ति अपने आप मे एक गहन अर्थ छुपाये हुये है, बहुत बहुत धन्यबाद है इस रचना के लिये, आगे भी हमे आप के आशीर्वाद का इन्तजार रहेगा ,

प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on June 8, 2010 at 10:22am
आचार्य जी - गीत की एक एक पंक्ति मानो स्वयं गाती हुई प्रतीत हो रही है ! हमारा अहोभाग्य कि आप जैसी विभूति हम बच्चों का मार्गदर्शन करने के लिए हमारे बीच विधमान है !

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Rana Pratap Singh on June 8, 2010 at 9:11am
परम श्रद्धेय आचार्य जी के चरणों में सादर प्रणाम

कुछ लिखना तो संभव ही नहीं हो पा रहा है अभी इतना मंत्र मुग्ध हूँ. प्रातः काल से ना जाने कितनी बार पढ़ चुका हूँ. इस रचना को पढ़कर कौन सम्मोहित हुए बिना रह सकता है?..प्रणय रस में डूबने के पश्चात किसके मन की वीणा के तार झंकृत हुए बिना रह सकते हैं?......कहीं स्वप्नलोक में ले जाती है यह कविता............ इतने सुन्दर शब्दों का प्रयोग और अलंकारों का दर्शन तो समुद्र में से मोती खोज लाने के तुल्य है......................

आपके आशीर्वाद की प्रतीक्षा में.....
राणा प्रताप सिंह
(प्रयाग)

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

शेष रखने कुटी हम तुले रात भर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

212/212/212/212 **** केश जब तब घटा के खुले रात भर ठोस पत्थर  हुए   बुलबुले  रात भर।। * देख…See More
5 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन भाईजी,  प्रस्तुति के लिए हार्दि बधाई । लेकिन मात्रा और शिल्पगत त्रुटियाँ प्रवाह…"
13 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ भाईजी, समय देने के बाद भी एक त्रुटि हो ही गई।  सच तो ये है कि मेरी नजर इस पर पड़ी…"
13 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय लक्ष्मण भाईजी, इस प्रस्तुति को समय देने और प्रशंसा के लिए हार्दिक dhanyavaad| "
14 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश भाईजी, आपने इस प्रस्तुति को वास्तव में आवश्यक समय दिया है. हार्दिक बधाइयाँ स्वीकार…"
15 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी आपकी प्रस्तुति के लिए हार्दिक धन्यवाद. वैसे आपका गीत भावों से समृद्ध है.…"
16 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अखिलेश जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त चित्र को साकार करते सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
yesterday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"सार छंद +++++++++ धोखेबाज पड़ोसी अपना, राम राम तो कहता।           …"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"भारती का लाड़ला है वो भारत रखवाला है ! उत्तुंग हिमालय सा ऊँचा,  उड़ता ध्वज तिरंगा  वीर…"
yesterday
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"शुक्रिया आदरणीय चेतन जी इस हौसला अफ़ज़ाई के लिए तीसरे का सानी स्पष्ट करने की कोशिश जारी है ताज में…"
Friday
Chetan Prakash commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post अस्थिपिंजर (लघुकविता)
"संवेदनाहीन और क्रूरता का बखान भी कविता हो सकती है, पहली बार जाना !  औचित्य काव्य  / कविता…"
Friday
Chetan Prakash commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"अच्छी ग़ज़ल हुई, भाई  आज़ी तमाम! लेकिन तीसरे शे'र के सानी का भाव  स्पष्ट  नहीं…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service