ख़ामोश जुबां, ख़ामोश नज़र ....
ख़ामोश जुबां, ख़ामोश नज़र
ख़ामोश वो सारे नज़ारे थे
ख़ामोश थी खून की चीखें सभी
ख़ामोश वो अश्कों के धारे थे
ख़ामोश जुबां, ख़ामोश नज़र
ख़ामोश वो सारे नज़ारे थे …….
खूनी चेहरों के मंजर ने
हर धर्म का फर्क मिटा डाला
क्या अपना और बेगाना क्या
हर दुःख को अपना बना डाला
हर चेहरे पे इक दहशत थी
और सपनें सहमे सारे थे
ख़ामोश जुबां, ख़ामोश नज़र
ख़ामोश वो सारे नज़ारे थे ….
बिखरे चूडी के टुकडों का
बंदूक क्या दर्द को समझेगी
जो गोली खून की प्यासी हो
वो सिन्दूर का मर्म न समझेगी
प्रतिशोध की ज्वाला थी दिल में
और आंखों में अंगारे थे
ख़ामोश जुबां, ख़ामोश नज़र
ख़ामोश वो सारे नज़ारे थे ….
क्योँ मानव दानव बन बैठा
और कत्ल को धर्म समझ बैठा
अंजाम-ऐ-मौत से क्योँ अपने
जीवन का श्रृंगार वो कर बैठा
ऐ कातिल झुक के देख जरा
कुछ इनमें चेहरे तुम्हारे थे
ख़ामोश जुबां, ख़ामोश नज़र
ख़ामोश वो सारे नज़ारे थे, ख़ामोश वो सारे नज़ारे थे…………
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय Dr. Vijai Shanker जी रचना पर आपकी आत्मीय प्रशंसा का तहे दिल से शुक्रिया।
आदरणीय somesh kumar जी रचना पर आपकी आत्मीय प्रशंसा का तहे दिल से शुक्रिया।
आदरणीय Hari Prakash Dubey जी रचना पर आपकी आत्मीय प्रशंसा का तहे दिल से शुक्रिया।
खूनी चेहरों के मंजर ने
हर धर्म का फर्क मिटा डाला
क्या अपना और बेगाना क्या
हर दुःख को अपना बना डाला
हर चेहरे पे इक दहशत थी
और सपनें सहमे सारे थे
ख़ामोश जुबां, ख़ामोश नज़र
ख़ामोश वो सारे नज़ारे थे ….सुंदर प्रस्तुति |आदरणीय
ऐ कातिल झुक के देख जरा
कुछ इनमें चेहरे तुम्हारे थे
ख़ामोश जुबां, ख़ामोश नज़र
ख़ामोश वो सारे नज़ारे थे....सुन्दर रचना .....हार्दिक बधाई आदरणीय सुशील सरना जी !
मिथिलेश वामनकर जी आपकी स्नेहिल प्रशंसा का हार्दिक आभार
भावुक और लाजवाब रचना की प्रस्तुति के लिये आपको बहुत बहुत बधाई....
gumnaam pithoragarhi जी आपकी स्नेहिल प्रशंसा का हार्दिक आभार
Shyam Narain Verma जी आपकी स्नेहिल प्रशंसा का हार्दिक आभार
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