For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कोई कारवां भी दिखा नही / ग़ज़ल (मिथिलेश वामनकर)

11212 x 4  ( बह्र-ए-क़ामिल में पहला प्रयास) 

--------------------------------------------------------

न वो रात है, न वो बात है, कहीं ज़िन्दगी की सदा नहीं   

न उसे पता, न मुझे पता, ये सिफत किसी को अता नहीं

 

वो खुशी कभी तो मिली नहीं, मेरी किस्मतों में रही कहाँ

कोई दश्त जिसमे नदी न हो, हूँ शज़र कभी जो फला नहीं

 

ये जमीं कहे किसे दास्तां वो जो बादलों से हुई खता

ये दरख़्त कितने डरे हुए कहीं बारिशों की दुआ नही

 

जो तलाश थी मेरी आरज़ू, जो पयाम था मेरी तिश्नगी

कोई फूल सा भी हंसा नहीं, कोई पंछियों सा उड़ा नहीं

 

वो जो तीरगी में चराग है, वो हयात है उसे थाम ले

ये अज़ाब गम का नसीब है इसे रोक ले वो बना नहीं

 

कोई हमनवां न तो हमसफ़र कि सदा सुने जो फिराक़ में

वो जो चल पड़ा तो अकेला था कोई कारवां भी दिखा नही

 

 

------------------------------------------------------------------

 (मौलिक व अप्रकाशित)         © मिथिलेश वामनकर 

-----------------------------------------------------------------

 

 

बह्र-ए-क़ामिल मुसम्मन सालिम

अर्कान –   मुतफ़ाइलुन / मुतफ़ाइलुन / मुतफ़ाइलुन / मुतफ़ाइलुन

वज़्न –    11212 / 11212 / 11212 / 11212 

Views: 1392

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Anurag Singh "rishi" on December 23, 2014 at 5:21pm
वाह सुन्दर अश'आर
सादर

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 23, 2014 at 4:13pm
आदरणीय डॉ गोपाल नारायण श्रीवास्तव सर आपकी प्रशंसा और सराहना से अभिभूत हूँ और रोमांचित भी। कहते है राग रसोई पागरी कबहु कबहु बन जाए। इस नए प्रयास को इतना स्नेह और उत्साह प्रदान करने के लिए आपका ह्रदय से आभारी हूँ। हार्दिक धन्यवाद। नमन।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 23, 2014 at 4:04pm
आदरणीय दिनेश कुमार जी आपकी उत्साह वर्धक सराहना के लिए आभार, हार्दिक धन्यवाद।
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 23, 2014 at 4:00pm

वामनकर जी

जैसी गजल आप लिख रहे है i कौन कह सकता है कि आप सीख रहे है  i मात्राओ  का हेर  फेर तो हो जाता है मगर आपके भाव इतने उम्दा कमाल है i बहुत खूब i


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 23, 2014 at 3:32pm
आदरणीय गिरिराज भंडारी सर आपकी इस बह्र की ग़ज़लों से प्रेरित होकर ही प्रयास किया है, आपको प्रयास पसंद आया, हार्दिक आभार। आप ने सही कहा नाम में 221 मात्रा ही होगी। इसे सुधारने का प्रयास करता हूँ।
Comment by दिनेश कुमार on December 23, 2014 at 2:37pm
बहुत बहुत सुन्दर गजल हुई है। हर शे'र लाजवाब। वाह।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 23, 2014 at 2:18pm

आदरणीय मिथिलेश भाई , बह्रे कामिल जैसी कठिन बहर में बढिया ग़ज़ल कही है !
कोई फूल सा भी हंसा करे, कोई पंछियों सा उड़ा करे
ये तलाश है मेरी आरज़ू, ये पयाम है मेरी तिश्नगी === बहुत खूब सूरत शेर , हार्दिक बधाइयाँ ।

आदरणीय दो मिसरे बे बहर हो रहे हैं ---
ये दरख़्त है/ सहमे हुए / कहीं बारिशों / की दुआ नही
11212 / 2212 /11212 / 11212
कोई हमनवां/ न तो हमसफ़र/ कि सदा सुने /‘मिथिलेश’ जो
11212 11212 11212 2212

आपके नाम की मात्रा मेरे हिसाब से -- 221 होना चाहिये , सोच के देखियेगा ।
ग़ज़ल के लिये बहुत बधाइयाँ ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 23, 2014 at 1:25pm
आदरणीय सुशील सरना सर आपको ये प्रयास पसंद आया लिखना सार्थक हुआ। आपकी उत्साह बढ़ाती टिप्पणी से अभिभूत हूँ। आपका हार्दिक धन्यवाद । आभार।
Comment by Sushil Sarna on December 23, 2014 at 1:18pm

कोई फूल सा भी हंसा करे, कोई पंछियों सा उड़ा करे
ये तलाश है मेरी आरज़ू, ये पयाम है मेरी तिश्नगी

वो जो तीरगी में चराग है, वो हयात है उसे थाम ले
ये ग़मों की जो बहती नदी इसे रोक ले तेरा बस नही

वाह आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी बहुत ही खूबसूरत भावों को समेटे है आपकी ये प्यारी सी ग़ज़ल जिसका हर अशआर अपनी महक से महक रहा है। हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 23, 2014 at 1:11pm
आदरणीय राहुल दांगी जी प्रयास आपको पसंद आया बहुत बहुत आभार, हार्दिक धन्यवाद

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

पूनम की रात (दोहा गज़ल )

धरा चाँद गल मिल रहे, करते मन की बात।जगमग है कण-कण यहाँ, शुभ पूनम की रात।जर्रा - जर्रा नींद में ,…See More
5 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी

वहाँ  मैं भी  पहुंचा  मगर  धीरे धीरे १२२    १२२     १२२     १२२    बढी भी तो थी ये उमर धीरे…See More
6 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , उत्साह वर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार "
6 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"आ.प्राची बहन, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार।"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"कहें अमावस पूर्णिमा, जिनके मन में प्रीत लिए प्रेम की चाँदनी, लिखें मिलन के गीतपूनम की रातें…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"दोहावली***आती पूनम रात जब, मन में उमगे प्रीतकरे पूर्ण तब चाँदनी, मधुर मिलन की रीत।१।*चाहे…"
Saturday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"स्वागतम 🎉"
Friday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

१२२/१२२/१२२/१२२ * कथा निर्धनों की कभी बोल सिक्के सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के।१। * महल…See More
Thursday
Admin posted discussions
Jul 8
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Jul 7
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
Jul 7
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
Jul 7

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service