नवगीत : दिन में दिखते तारे.
तिल सी खुशियों की राहों में,
खड़े ताड़ अंगारे.
कैसे कटें विपत्ति के दिन,
दिन में दिखते तारे.
आशा बन बेताल उड़ गयीं,
उलझे प्रश्न थमाकर.
मुश्किल का हल खोजे विक्रम,
अपना चैन गवाँकर.
मीन जी रही क्या बिन जल के.
खाली पड़े पिटारे.
कैसे कटें विपत्ति के दिन..
दिन में दिखते तारे.
दर्पण हमको रोज दिखाता,
एक फिल्म आँखों से,
पत्तों जैसे दिवस झर गए,
इन सूखी शाखों से.
पल क्षण कटे साल भी बीते.
सब कारे अँधियारे,
कैसे कटें विपत्ति के दिन..
दिन में दिखते तारे.
कटे हाथ में सब्बल कैसी,
एक टांग क्या दौड़े,
बृद्धावस्था की लाठी भी,
बूढ़े का सर फोड़े.
स्यानी बिटिया की मजबूरी
पाले बूढ़े बारे.
कैसे कटें विपत्ति के दिन..
दिन में दिखते तारे.
**हरिवल्लभ शर्मा 01.01.2015
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
आदरणीय शिज्जू "शकूर" जी आपका कुशल मार्गदर्शन समय समय पर रचना धर्मिता को पुष्ट करता है ..हार्दिक आभार आपका.
आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी आपकी उत्साहित करती प्रतिक्रिया का स्वागत ..हार्दिक आभार.
आदरणीय Hari Prakash Dubey जी आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार आपका.
आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी आपकी उत्साहित करती प्रतिक्रिया का हार्दिक आभार..
आदरनीय SHARAD SINGH "VINOD" जी आपके द्वारा गीत की उत्तम समीक्षा की गई अपना अनमोल मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु हार्दिक आभार.
आदरणीय Shyam Narain Verma जी आपकी स्नेहिल प्रक्रिया हेतु ह्रदय से आभार ..सादर.
आशा बन बेताल उड़ गयीं,
प्रश्न यक्ष थमाकर.
मुश्किल का हल खोजे विक्रम,
अपना चैन गवाँकर.
बिन जल के क्या मीन जी रही.
खाली पड़े पिटारे.
कैसे कटें विपत्ति के दिन..
दिन में दिखते तारे.
आदरणीय हरिवल्लभ सर जी , सभी बंध एक से बढ़कर एक है |नवगीत में आपकी सिद्धता प्रमाणित करती हुई सुन्दर रचना है |सादर अभिनन्दन
नव वर्ष का सुंदर नवगीत
आदरणीय हरिवल्लभ शर्मा सर हमेशा की तरह इस बार भी बेहतरीन रचना हुई है बहुत बहुत बधाई आपको
आदरणीय हरिवल्लभ शर्मा सर सुन्दर नवगीत की प्रस्तुति के लिये हार्दिक बधाई.
सुन्दर पंक्तियाँ -
दर्पण हमको रोज दिखाता,
एक फिल्म आँखों से,
पत्तों जैसे दिवस झर गए,
इन सूखी शाखों से.
पल क्षण कटे साल भी बीते.
सब कारे अँधियारे,
कैसे कटें विपत्ति के दिन..
दिन में दिखते तारे.
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