२१२२--२१२२--२१२
आपके किरदार को समझा चलो
नाग की फुफकार को समझा चलो
हार कर संसार से हर दौड़ में
वक़्त की रफ़्तार को समझा चलो
मोल कुछ पाया नहीं अख़्लाक़ का
ख़ुद ग़रज़ बाज़ार को समझा चलो
कहता है कोई शिफ़ा मेरी नहीं
वो मेरे आज़ार को समझा चलो
सर गँवा कर भी बचा ली आबरू
क़ीमती दस्तार को समझा चलो
दोस्त था लेकिन अदू से जा मिला
मैं भी इक अय्यार को समझा चलो
ख़ामोशी इनकार भी इक़रार भी
वो मेरे इज़हार को समझा चलो
आजकल गाता है वो रोता नहीं
दर्द की झंकार को समझा चलो
देखकर इक दीप को ‘खुरशीद’ भी
तीरगी के भार को समझा चलो
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
बेहद उम्दा
ख़ामोशी इनकार भी, इक़रार भी
वो मेरे इज़हार को समझा चलो.
ख़ामोशी इनकार भी इक़रार भी
वो मेरे इज़हार को समझा चलो
सारी गज़ल अच्छी लगी और ये अश आर कुछ खास |
बेहद उम्दा ग़ज़ल
ख़ामोशी इनकार भी, इक़रार भी
वो मेरे इज़हार को समझा चलो.... वाह्ह्ह .. कमाल का अशआर
आजकल गाता है वो रोता नहीं
दर्द की झंकार को समझा चलो.... बेहद उम्दा
बेहतरीन ग़ज़ल के लिए दिल से दाद कुबूल फरमाएं
मोल कुछ पाया नहीं अख़्लाक़ का
ख़ुद ग़रज़ बाज़ार को समझा चलो
कहता है कोई शिफ़ा मेरी नहीं
वो मेरे आज़ार को समझा चलो
सर गँवा कर भी बचा ली आबरू
क़ीमती दस्तार को समझा चलो
देखकर इक दीप को ‘खुरशीद’ भी
तीरगी के भार को समझा चलो
बहुत शानदार ग़ज़ल आदरणीय
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