कोई पत्थर और कोई आईने ले के
आ रहा हर एक अपने दायरे ले के
यूँ चले हो रात को दीपक बुझे ले के
खुद अँधेरा भी परेशाँ है इसे ले के
बस ठिठुरते रह गए दरवाजे बाहर ख्वाब
ये सुबह आई है कितने रतजगे ले के
जिंदगानी तंग गलियां भी न दे पाई
मौत हाजिर हो गई है हाइवे ले के
आपका आना तो कल ही सुर्ख़ियों में था
आज फिर अख़बार आया हादसे ले के
साकिया यूँ बेरुखी से मार मत हमको
रिन्द जायेगा कहाँ ये प्यास ले ले के
कुछ न कुछ देकर उन्हें खुश कर रहे थे लोग
हमने उनको खुश किया कुछ मशविरे ले के
गांव की पगडंडियों में खो गया हूँ मैं
माज़ी की यादों के मीठे ज़ायके ले के
लग रहे हैं पांव भी ये बोझ अब उनको
जो चले ही थे इरादे अनमने ले के
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
khoobsoorat mitra - badhaee
वाह , बहुत खूब ग़ज़ल कही है बधाई
जिंदगानी तंग गलियां भी न दे पाई
मौत हाजिर हो गई है हाइवे ले के
जिंदगानी तंग गलियां भी न दे पाई
मौत हाजिर हो गई है हाइवे ले के-------------------- bilkul nayee kalpna , bahut sundar
जिंदगानी तंग गलियां भी न दे पाई
मौत हाजिर हो गई है हाइवे ले के
वाह भुवन भाई जी बहुत खूब ग़ज़ल कही है बधाई
आपका आना तो कल ही सुर्ख़ियों में था
आज फिर अख़बार आया हादसे ले के......आदरणीय भुवन निस्तेज जी सुन्दर रचना ,बधाई आपको !
आदरणीय भुवन जी बेहतरीन ग़ज़ल हुई है .... शेर दर शेर दाद कुबूल कीजिये
मतला उम्दा हुआ है ....
ये अशआर तो कमाल हुए है -
जिंदगानी तंग गलियां भी न दे पाई
मौत हाजिर हो गई है हाइवे ले के............... वाह्ह
कुछ न कुछ देकर उन्हें खुश कर रहे थे लोग
हमने उनको खुश किया कुछ मशविरे ले के..... बहुत खूब
लग रहे हैं पांव भी ये बोझ अब उनको
जो चले ही थे इरादे अनमने ले के...... उम्दा
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