For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

माँझी ( एक कुण्डलिया छंद) ... डॉ० प्राची सिंह

माँझी मंजिल से पृथक डालो नहीं पड़ाव

भँवर भरे मझधार में क्यों उलझाते नाव?

क्यों उलझाते नाव, लहर पथ कहाँ उकेरे

उथल-पुथल संघर्ष, लाख चौरासी फेरे ,

एकल करो विमर्श! बात करनी क्या साँझी?

क्या होगा परिणाम, राह भटके जो माँझी?

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

Views: 693

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Dr Ashutosh Mishra on January 19, 2015 at 7:21pm

आदरणीया प्राचीजी इस शानदार रचना पर आपको हार्दिक बधाई सादर 

Comment by Hari Prakash Dubey on January 19, 2015 at 7:06pm

आदरणीया डॉ प्राची सिंह जी , सोच रहां हूँ इतने कम शब्दों में इतनी  सुन्दर प्रस्तुति कैसे लिखी जा सकती है ? बहुत ही सुन्दर रचना , हार्दिक बधाई ! सादर 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on January 19, 2015 at 6:54pm

बहुत सुंदर और भावपूर्ण कुण्डलिया छंद | जीवन रूपी नैयाँ न भटके, सार रूप में बहुत कुछ समाता छंद रचा है | हार्दिक बधाई आपको 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 19, 2015 at 2:36pm

आ० प्राची जी

चौरासी लाख फेरे से आध्यात्मिक  संकेत देकर आपने न मांझी  मे ईश्वर के दर्शन कराये i उसके विचलन को हम अध्यात्म में ही जीवन की परीक्षा कहते हैं i वह अधिक परीक्षा न ले यानि अधिक न भटके  यह जीव की सहज प्रार्थना है i बहुत अच्छे शब्दों से आपने छंद सिद्ध किया है i आपको बधाई i  सादर i

Comment by Dr. Vijai Shanker on January 19, 2015 at 4:26am
" क्या होगा परिणाम, राह भटके जो माँझी?"
आदरणीय डॉ o प्राची सिंह जी, बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति,
बहुत बहुत बधाई, सादर।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 19, 2015 at 12:30am

आदरणीया डॉ प्राची सिंह जी इस रचना को पढ़ते हुए कामायनी याद आ गई ..यथा 

शक्ति के विद्युत् कण जो व्यस्त,विकल बिखरे है हो निरुपाय 

समन्वय उनका करे समस्त, विजयनी मानवता हो जाय.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on January 19, 2015 at 12:01am

आ० मिथिलेश जी 

छंद का कथ्य आप सम पाठक की स्वीकार्यता पा सका और अभिव्यक्ति को आपकी आत्मीय सराहना मिली.. इससे मुझे भी संतोष हुआ है कि रचना सार्थक हो सकी  है 

आपका हार्दिक आभार 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 18, 2015 at 11:03pm

आदरणीया डॉ प्राची सिंह जी बहुत सुन्दर कुण्डलिया छंद हुआ है. एक एक शब्द जड़ा हुआ. कथ्य इतनी सहजता से उभर आया कि बस हृदय से वाह वाह स्वमेव ही निकलने लगे. हार्दिक बधाई स्वीकार करें 

माँझी मंजिल से पृथक,  डालो नहीं पड़ाव

भँवर भरे मझधार में,  क्यों उलझाते नाव?

क्यों उलझाते नाव, लहर पथ कहाँ उकेरे

उथल-पुथल संघर्ष, लाख चौरासी फेरे ,

एकल करो विमर्श! बात करनी क्या साँझी?

क्या होगा परिणाम, राह भटके जो माँझी?

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service