रोज की तरह ऑफिस में घुसने से पहले उसने झुक कर उस भिखारी को कुछ पैसे दिए बहुत जल्दी में था पर्स पाकेट में रखने की बजाय वहीँ गिर गया जो उस भिखारी ने तुरंत लपक लिया| भिखारी ने देखा कुछ पैसों के साथ पर्स में दो तीन तरह के कार्ड थे|
कुछ देर बाद बाहर के ऑफिस से ऊँची आवाज आवाज आई अरे अरे ये भिखारी अन्दर कैसे आ गया?’ “साब बड़े साहब का ये पर्स गिर गया था सो उसे ही देने आया था”| “अच्छा अच्छा लाओ मैं दे दूँगा लेते हुए बाबू का चेहरा चमक उठा|
“साहब इस गमले से एक पत्ता तोड़ लूँ” ? “क्या करेगा पत्ते का..... चाटेगा?? ..”अच्छा ..अच्छा लेजा जा भिखारी कहीं का और कुछ नहीं मिला तो पत्ता ही मांग लिया हाहाहा....”|भिखारी भारी क़दमों से अपनी जगह पर लौट आया और शाम होने का इन्तजार करने लगा|
पांच बजे साहब बदहवास सा दौड़ता हुआ उसके पास आया तो उसके बोलने से पहले ही भिखारी पूछ बैठा “साहब पर्स मिल गया” ? साहब बोला “यही तो मैं तुमसे पूछने आया हूँ सब जगह ढूँढ लिया .. कहीं सुबह तो?? ....”जी साहब यहीं गिरा था” फिर उसने सारी बात बता दी|साहब तुरंत लौट कर दफ्तर के बाबू के पास पंहुचा और पर्स के विषय में पूछा ….वो अनजान बनकर बोला “साहब क्या आप भी एक भिखारी की बात मान गए जो एक-एक पैसे के लिए,...कटोरा लिए फिर रहा है वो आपका पर्स लौटाएगा" ?
"वो यहाँ नहीं आया न ही मुझसे मिला, झूठा कहीं का...” भिखारी जो साहब के पीछे खड़ा था बोला “साहब मैं जानता हूँ मेरी बात का तो कोई यकीन नहीं करेगा किन्तु देखिये ये पत्ता बोलेगा”.. फिर उसने अपने कटोरे में से वो पत्ता निकाला और कौने में रखे उस गमले में पौधे की डंडी के साथ मिलान किया|
बाबू की आँखें झुक गई वो साहब के आगे हाथ जोड़ने लगा माफ़ी मांगने लगा अपनी नौकरी की भीख मांगने लगा ..भिखारी जाते जाते बोला “साहब मैं तो सड़क का एक छोटा सा भिखारी हूँ पर आपके दफ्तर के अन्दर तो मुझसे बड़े भिखारी बैठे हैं”|
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
सुंदर .क्या समझदारी का परिचय ,भिखारी का ,जानता था उसकी गरीबी और भिखमंगई पेसे उसके चरित्र को तार-तार बताने का प्रयत्न होगा |और सच में भिखारी हर जगह भरे पड़े हैं |बधाई इस लघुकथा पर |
बहुत सुंदर लघु कथा | वास्तव में हर दफ्तर में हर शहर में बड़े भिखारी ही जनता को ही नहीं पुरे देख को लूट रहे है और हम उन्हें भिखारी नहीं कहते | सार्थक लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई
आदरणीया राजेश कुमारी जी .... देखिये ये पत्ता बोलेगा.....बहुत सुन्दर सन्देश और यथार्थ का चित्रण करती लघुकथा , हार्दिक बधाई ! सादर !
अपनी भावुकता को भुलाकर ,कभी-कभी पत्ते तोड़ लाना. न जाने किसके मन में क्या..? हो. बहुत सराहनीय सन्देश. बहुत-२ बधाई आदरणीया राजेश दीदी
वाह .बेहतरीन लघुकथा ,,बधाई ,,आ.राजेश कुमारी जी |
महनीया
संवेदना से भरी कथा i गमले के पत्ते की उर्वर कल्पना ने कथा में चार चाँद लगाये i चरित्र के मामले में सफेद्पोश प्रायः बौने ही साबित होते है i सादर i
बहुत बढ़िया कहानी , हार्दिक बधाई आपको |
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online