बच्ची को मोटरसाइकिल पर बैठा छोड़ कस्टमर दुकान के अंदर आया और बोला,
"भाई साहब जरा बिटिया के लिए टॉफी और बिस्किट देना"
अभी मैं बिस्किट निकालने के लिए मुड़ा ही था कि बाहर धड़ाम की आवाज के साथ मोटरसाइकिल गिर गयी और बच्ची भी। कुछ लोगो ने बच्ची को उठाया और उसके हाथ व पैर में लगी चोटों को देखने लगे । इधर कस्टमर भी दौड़ कर बाहर भागा और जल्दी से मोटरसाईकिल उठाया तथा टूटी हुई हेड लाइट को देखते ही चटाक की आवाज ।
बच्ची के गाल पर उँगलियों की छाप व आँखों में आँसू स्पष्ट दिख रहे थे ।
(मौलिक व अप्रकाशित)
पिछला पोस्ट => लघुकथा : फेस वैल्यू
Comment
आदरणीय जवाहर लाल जी, सराहना और प्रोत्साहन हेतु बहुत बहुत आभार
आदरणीय डॉ विजय शंकर जी, लघुकथा पर आपका आशीर्वाद उत्साहवर्धन कर गया, बहुत बहुत आभार.
बहुत ही सुंदर लघुकथा. आज के आपा-धापी से भरे जीवन में ऐसा स्वभाव बहुत देखने को मिलता है, अब इसे मस्तिष्क पर भौतिकता का सवार होना कहेंगे या संवेदनहीनता..? बहुत-बहुत बधाई आपको आदरणीय बागी जी
आदरणीय बागी जी
बहुत ही सुन्दर कथा आपने गुम्फित की है I संवेदनहीनता के भी कई रूप है और आपने जिस संवेदनहीनता का मुजाहरा पेश किया वह मानव् की हृदयहीनता ही नहीं अपितु उसका अज्ञान भी है i इस उम्दा कथा के लिया आपको बहुत-बहुत बधाई i सादर i
आज इन्सान इन्सान से ज्यादा भौतिक वस्तुओं के मोह में जकड़ता जा रहा है, इसे सिद्ध करने में सफल कहानी के लिए हार्दिक बधाई श्री गणेशजी "बागी" जी
वात्सल्य किससे अधिक है ,एक सीख है ,मैं भी कई बार अपने ढाई वर्ष के बेटे की शरारत पर झुंझला जाता हूँ पर जब बाड में मनन करता पाता हूँ तो स्वयं ही दोषी साबित होता हूँ \आत्म-विमर्श को प्रेरित करती इस लघुकथा पर बधाई |
आदरणीय हरिप्रकाश दुबे जी, सराहना और उत्साहवर्धन हेतु बहुत बहुत आभार.
आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी, लघुकथा पर आपका आना और सकरात्मक प्रतिक्रिया दोनी हर्षित कर गयी, प्रोत्साहन हेतु बहुत बहुत आभार.
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