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मुद्दतों हम को सताता रहा तहज़ीब का ग़म
आज इतना है कि आँखों को झुका लेते हैं.........wah wah wah
मेरे ख़ुश होने से कब उन को खुशी होती है
मेरे एहबाब मिरे ग़म का मज़ा लेते हैं --- बढिया बात कही , सुन्दर ग़ज़ल हुई है , बधाइयाँ , आदरणीय ।
समर कबीर जी, आप जी की गजल के सभी अशआर लाजवाब , मगर ये शे'र मुझे बुत ही सुंदर लगा
मुद्दतों हम को सताता रहा तहज़ीब का ग़म
आज इतना है कि आँखों को झुका लेते हैं -बधाई हो
//कितना मासूम है देखो ज़रा फूलों का मिज़ाज
तिशनगी ओस के क़तरों से बुझा लेते हैं//
वाह वाह, क्या मासूमियत है जनाब, इस मुलायमियत भरे अंदाज के साथ खुबसूरत शेर कहा है, अच्छी ग़ज़ल प्रस्तुत हुई है, दाद कुबूल करें आदरणीय समर साहब.
मेरे ख़ुश होने से कब उन को खुशी होती है
मेरे एहबाब मिरे ग़म का मज़ा लेते हैं
शैर कहने का हुनर सबको कहाँ मिलता हैं
यूँ तो क़व्वाल भी अशआर बना लेते हैं
आदरणीय कबीर साहब ,सभी अशहार लासानी है |मेयारी और उम्दा ग़ज़ल पर शेर दर शेर दाद कबूल फरमावें |सादर अभिनन्दन |
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