For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

सारी दुनिया को तमाज़त से बचा लेते हैं
हम वह बादल हैं जो सूरज को छुपा लेते हैं

मेरे ख़ुश होने से कब उन को खुशी होती है
मेरे एहबाब मिरे ग़म का मज़ा लेते हैं

शैर कहने का हुनर सबको कहाँ मिलता हैं
यूँ तो क़व्वाल भी अशआर बना लेते हैं

कितना मासूम है देखो ज़रा फूलों का मिज़ाज
तिशनगी औस के क़तरों से बुझा लते हैं

मुद्दतों हम को सताता रहा तहज़ीब का ग़म
आज इतना है कि आँखों को झुका लेते हैं

------ समर कबीर

मौलिक / अप्रकशित

Views: 734

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by ajay sharma on February 20, 2015 at 10:46pm

मुद्दतों हम को सताता रहा तहज़ीब का ग़म
आज इतना है कि आँखों को झुका लेते हैं.........wah wah wah 

Comment by Samar kabeer on February 4, 2015 at 2:47pm
मोहतरम जनाब गिरिराज भंडारी जी,आदाब,हौसला अफ़ज़ाई के लिये,"इनायत,करम,शुक्रिया,महरबानी|

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 4, 2015 at 1:28pm

मेरे ख़ुश होने से कब उन को खुशी होती है
मेरे एहबाब मिरे ग़म का मज़ा लेते हैं  ---  बढिया बात कही , सुन्दर ग़ज़ल हुई है , बधाइयाँ , आदरणीय ।

Comment by Samar kabeer on February 3, 2015 at 4:52pm
जनाब मोहन बेगोवाल जी ,ग़ज़ल पसंद करने के लिये बहुत बहुत शुक्रिया |
Comment by Samar kabeer on February 3, 2015 at 4:49pm
ईआर.गणेश जी "बागी" जी,आदाब अर्ज़ करता हूँ ,आप को ग़ज़ल पसंद आई शुक्रिया,आप के लिये इतना ही कहूँगा कि "बहुत जी ख़ुश हुवा है तुम से मिलकर
अभी कुछ लोग बाक़ी हैं जहाँ में"
Comment by Samar kabeer on February 3, 2015 at 4:39pm
जनाब ख़ुरशीद भाई आदाब,ग़ज़ल की तरीफ़ के लिये बहुत बहुत शुक्रिया |
Comment by मोहन बेगोवाल on February 3, 2015 at 11:26am

   समर कबीर जी, आप जी की गजल के सभी अशआर लाजवाब , मगर ये शे'र मुझे बुत ही सुंदर लगा 

मुद्दतों हम को सताता रहा तहज़ीब का ग़म
आज इतना है कि आँखों को झुका लेते हैं -बधाई हो 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on February 3, 2015 at 11:17am

//कितना मासूम है देखो ज़रा फूलों का मिज़ाज
तिशनगी ओस के क़तरों से बुझा लेते हैं//

वाह वाह, क्या मासूमियत है जनाब, इस मुलायमियत भरे अंदाज के साथ खुबसूरत शेर कहा है, अच्छी ग़ज़ल प्रस्तुत हुई है, दाद कुबूल करें आदरणीय समर साहब.

Comment by khursheed khairadi on February 3, 2015 at 10:33am

मेरे ख़ुश होने से कब उन को खुशी होती है
मेरे एहबाब मिरे ग़म का मज़ा लेते हैं

शैर कहने का हुनर सबको कहाँ मिलता हैं
यूँ तो क़व्वाल भी अशआर बना लेते हैं

आदरणीय कबीर साहब ,सभी अशहार लासानी है |मेयारी और उम्दा ग़ज़ल पर शेर दर शेर दाद कबूल फरमावें |सादर अभिनन्दन |

Comment by Samar kabeer on February 2, 2015 at 10:13pm
जनाब विजय जी,आदाब,मैं आपकी सुख़न शनासी का क़ाइल हो गया,बहुत बहुत शुक्रिया |

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

सालिक गणवीर shared Admin's page on Facebook
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी's blog post was featured

एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]

एक धरती जो सदा से जल रही है   ********************************२१२२    २१२२     २१२२ एक इच्छा मन के…See More
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]

एक धरती जो सदा से जल रही है   ********************************२१२२    २१२२     २१२२ एक इच्छा मन के…See More
Tuesday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . .तकदीर

दोहा सप्तक. . . . . तकदीर  होती है हर हाथ में, किस्मत भरी लकीर ।उसकी रहमत के बिना, कब बदले तकदीर…See More
Tuesday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 166

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ छियासठवाँ आयोजन है।.…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"आदरणीय  चेतन प्रकाश भाई  आपका हार्दिक आभार "
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"आदरणीय बड़े भाई  आपका हार्दिक आभार "
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"आभार आपका  आदरणीय  सुशील भाई "
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"भाई अखिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए हार्दिक आभार।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"आ. प्रतिभा बहन, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद।"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service