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किरन की साँझ पे यल्गारियाँ नहीं चलती
तमस की भोर पे हकदारियाँ नहीं चलती
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बचाना यार चमन बारिशें भी गर हों तो
हवा की आग से कब यारियाँ नहीं चलती
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बसर तो प्यार से करते वतन में हम दोनों
धरम के नाम की गर आरियाँ नहीं चलती
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चले वही जो करे जाँनिसार खुश हो के
वतन की राह में गद्दारियाँ नहीं चलती
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बने हैं संत ये बदकार मिल रही इज्जत
कहूँ ये कैसे कि बदकारियाँ नहीं चलती
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नगर तो सबको है मालूम खत नहीं लिखता
मगर क्यूँ गाँव में हलकारियाँ नहीं चलती
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यल्गारी - आक्रमण, बदकार-चरित्रहीन,
बदकारी-चरित्रहीनता
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मौलिक व अप्रकाशित
Comment
क्या बात है !! आदरणीय लक्ष्मण भाई , बहु त सुन्दर गज़ल कही है , हार्दिक बधाई ॥
आदरणीय लक्ष्मण धामी जी क्या बात कही है ..किरन की साँझ पे यल्गारियाँ नहीं चलती
तमस की भोर पे हकदारियाँ नहीं चलती......सुन्दर रचना , हार्दिक बधाई !
बचाना यार चमन बारिशें भी गर हों तो
हवा की आग से कब यारियाँ नहीं चलती
**kya baat sir ji
आदरणीय लक्ष्मण धामी सर जी इस बार के तरही मुशायरे के काफिया रदीफ़ पर बेहतरीन ग़ज़ल कही है, हार्दिक बधाई स्वीकार करे.
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