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रख ले चराग़ साथ में, शम्सो क़मर नहीं --
रहजन बिना यहाँ पे कोई रहगुज़र नहीं
शम्सो क़मर - चाँद सूरज
तेरी लगाई आग की तुझको ख़बर नहीं
सब ख़ाक हो चुका यहाँ कोई शरर नहीं
रो ले अगर, तेरा बिना रोये गुज़र नहीं
लेकिन ये सच है, आँसुओं में अब असर नहीं
सब कुछ वही है इस जहाँ में , बस तेरे बिना
मेरी वो शाम गुम हुई , वैसी सहर नहीं
मिल जायें बदलियाँ तो वो सूरज को ढ़ाँक दें
लेकिन, अकेले भिड़ पड़े ये कारगर नहीं
कोशिश तो की परिंदों ने ज़िंदाँ को तोड़ दें
धोखा परों ने दे दिया, कोई ज़रर नहीं
ज़िंदाँ – कारागार , ज़रर – नुक्सान
क्यों इब्न ही रहे किन्हीं आँखों का नूर अब
क्यों बिंत कोई, आज भी नूरे नज़र नहीं
इब्न – बेटा , बिंत – बेटी
दुश्वारियों ने खुद ही जिन्हें हौसला दिया
वो क्यूँ करे गिला कि कोई हमसफर नहीं
हर चीज़ रंग रोज़ बदलती रही है , तब
ये जान ले, कि ग़म-खुशी भी उम्र भर नहीं
हर लम्हा कह रहा है, यही रोज़ बस हमें
“सामान सौ बरस के हैं कल की खबर नहीं"
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मौलिक एवँ अप्रकाशित
Comment
आदरणीय दिनेश भाई , आपको तीन तीन अश आर पसंद आये तो मन को अच्छा लगा । हौसला अफज़ाई के लिये आपका शुकिया । आदरणीय ' बदलती ' वाला शे र सच मे देखने और सुधारने के योग्य है , गलती बताने के लिये आपका शुक्रिया ॥ अभी सुधार रहा हूँ ॥
आदरणीय आशुतोष भाई , आपकी स्नेहिल सराहना के लिये आपका हृदय से आभारी हूँ ।
आदरणीय गिरिराज भाईसाब ..कहीं सन्देश देती कहीं आगाह करती कहीं हकीकत बताती कहीं शिकायत करती ..अलहदा रंगों से रंगी इस शानदार कृति के लिए ढेर सारी बढ़ाये क़ुबूल करिये ..सादर
आदरणीय खुर्शीद भाई , ईश कृपा से आप जैसे अनुज सबको मिले , अग्रज पर स्नेह बनाये रखियेगा ।
आदरणीय बड़े भाई गोपाल जी , आपकी सराहना के लिये आपका बहुत शुक्रिया , बस आपकी कृपा बनी रहे । आपका आभार ।
आदरणीया राजेश जी , गज़ल की सराहना और अशारों की पसंगगी के लिये आपका आभारी हूँ , आपने गज़ल कहना सार्थक कर दिया , पुनः आभार ।
उम्र मे बड़ा आपसे ज़रूर हूँ, पर ज्ञान मे आपसे बहुत छोटा हूँ। अनुज के रूप मे मेरी उम्र आपको स्वीकार करती है ।
आदरणीय गिरिराज सर आप उम्र और ज्ञान दोनों में मुझसे बड़े हैं तथा सम्माननीय हैं |थोड़ा बहुत इधर उधर से जानकारी जुटा लेने भर से यह अनुज ज्ञानी नहीं कहला सकता ,असली ज्ञान तो आप जैसे महानुभवों के स्नेह की छाया में है |कृपया अनुज को ज्ञानी कहकर स्नेह से वंचित न करें |सादर
ANUJ BHANDAAREE JEE
आपकी खूबसूरत गजल पर मेरा मन आशिक हो गया है i यह हुस्न जिन्दा रहे i सादर i
कोशिश तो की परिंदों ने ज़िंदाँ को तोड़ दें
धोखा परों ने दे दिया, कोई ज़रर नहीं---बहुत सुन्दर शेर
क्यों इब्न ही रहे किन्हीं आँखों का नूर अब---क्या कहने सुन्दर सन्देश परक
क्यों बिंत कोई, आज भी नूरे नज़र नहीं
हर चीज़ बदलती यहाँ है रोज़ रोज़, तब
ये जान ले, कि ग़म-खुशी भी उम्र भर नहीं----शानदार
बहुत अच्छी ग़ज़ल कही है
आ० खुर्शीद जी की बताई बह्र पर मैं भी एक ग़ज़ल लिख चुकी हूँ
आपको बहुत -बहुत बधाई आ० गिरिराज जी.
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