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मुहब्बत खुदा है ~ गजल

122 122 122 122

सुना था किसी से मुहब्बत खुदा है ।
हुयी तो ये जाना कोई हादसा है ।

थे तनहा कभी फिर भी अच्छे भले थे ,
सिवा दर्द के उसकी यादोँ मेँ क्या है ।

भला किस से कह दूँ भला कौन समझे ,
के जिसको लगी है वही जानता है ।

गये अपने दिल से गये अपनी जाँ से ,
ये है मर्ज ऐसी न जिसकी दवा है ।

अजब जिन्दगी के ये हालात समझो ,
वो ही वो है दिल मेँ जो दिल से जुदा है ।

मौलिक व अप्रकाशित
नीरज मिश्रा

Views: 994

Comment

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Comment by Neeraj Nishchal on February 21, 2015 at 4:39pm
महर्षि त्रिपाठी जी बहुत भहुत स्नेहिल आभार ।
Comment by Neeraj Nishchal on February 21, 2015 at 4:33pm
वंदना जी तहे दिल से आभार आपना स्नेह बनायेँ रखेँ
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on February 21, 2015 at 4:32pm

नीरज जी

आपके इश्क संबंधी अनुभव  काबिले दाद हैं  i प्रिय i

Comment by Neeraj Nishchal on February 21, 2015 at 4:32pm
बहुत बहुत आभार प्रकट करता हूँ आदरणीया प्रतिभा जी आपका आपकी प्रतिक्रिया पाकर बेहद खुशी हुयी ।
Comment by MUKESH SRIVASTAVA on February 21, 2015 at 2:28pm

sundar rachnaa bandhuwar

Comment by umesh katara on February 21, 2015 at 9:09am

वाह वाह

Comment by somesh kumar on February 21, 2015 at 8:30am

रहता है क्या है दिल में उसकी यादों के सिवाय 

एक कमरा था कभी वो भी मेरा ना रहा 

ये मोहब्बत ले आई किस मोड़ पर मुझको 

रतजगे ख़्वाब रहे और सवेरा ना रहा |

अच्छी गज़ल देने के लिए नीरज भाई आपको बधाई|

Comment by Samar kabeer on February 20, 2015 at 10:40pm
जनाब नीरज जी ,आदाब,बहुत अच्छी ग़ज़ल कही है आपने,शैर दर शैर दाद क़ुबूल फ़रमाऐं,इस मिसरे की तरफ़ आपका ध्यान आकर्षित करना चाहता हूँ:-

"ये है मर्ज ऐसी न जिसकी दवा है"

यह मिसरा इस तरह पढ़ेंगे तो सही होगा :-

"ये है मर्ज़ ऐसा न जिसकी दवा है"

,क्यूँकि "मर्ज़" मुज़क्कर है ,कृपया अन्यथा न लें |

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on February 20, 2015 at 10:39pm

वाह वाह बहुत खूब ग़ज़ल हुई है शेर दर शेर दाद कुबूल फरमाए....

Comment by Hari Prakash Dubey on February 20, 2015 at 9:40pm

आदरणीय नीरज जी ,सुन्दर रचना ,हार्दिक बधाई आपको !

सुना था किसी से मुहब्बत खुदा है ।
हुयी तो ये जाना कोई हादसा है ।..वाह

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