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मो. समर कबीर साहब,
इस मंच की परिपाटी के अनुसार ग़ज़लों को पोस्ट करते समय ग़ज़लकार अपनी ग़ज़ल के मिसरे का वज़न लिख दिया करते हैं. आपने भी इस पर अवश्य ध्यान दिया होगा. चूँकि यह मंच ’सीखने-सिखाने’ की अवधारणा पर कार्य करता है, मिसरों के वज़न दे दिये जाने से नव हस्ताक्षरों को ग़ज़ल को समझने में सहुलियत होती है.
सादर
आदरणीया निधि जी,
आदरणीया समर साहब की यह ग़ज़ल फेलुन फेलुन .. फ़ा के अनुसार ग्यारह ग़ाफ़ (गुरु) पर सधे मिसरे की ग़ज़ल है.
यानी, २२ २२ २२ २२ २२ २
इस तरीके की ग़ज़लों में दो लाम (लघुओं) को एक गुरु की तरह व्यवहृत किया जा सकता है. आप इस मंच पर उपलब्ध ग़ज़ल के पाठों को कृपया ध्यान से पढ़ जाइये.
शुभेच्छाएँ
आज उसी पर फूल वफ़ा के खिलते हैं
तुमने जिस धरती को बंजर लिख्खा है
पढ़कर देखो मेरी इन तहरीरों को
तुमको ही उन्वान बनाकर लिख्खा है
बहुत खूबसूरत भाव बने हैं सर.. मेरी जानकारी के लिए क्या आप इसकी बहर बताएँगे?
वाह वा जनाबे आली
ज़िन्दाबाद ज़िन्दाबाद
पढ़कर देखो मेरी इन तहरीरों को
तुमको ही उन्वान बनाकर लिख्खा है
कुछ लोगों ने दौर-ए-ख़िज़ाँ के बारे में
कमरे में फूलों को सजाकर लिख्खा है
ग़ज़ब !
लेकिन मतले और मक्ते का ज़वाब नहीं. दिल से बधाई कुबूल करें आदरणीय.
आपकी प्रस्तुत ग़ज़ल को विगत माह की सर्वश्रेष्ठ रचना चयनित होने पर विशेष बधाई और हार्दिक शुभकामनाएँ
बहुत ही लाजबाब ग़ज़ल हुई है आ० समर कबीर जी,देरी से पढने का खेद है
आज उसी पर फूल वफ़ा के खिलते हैं
तुमने जिस धरती को बंजर लिख्खा है------एक ऐसा शेर जिसको बरसों बरस तक भूल नहीं पायेंगे ...कमाल कमाल
बहुत बहुत बधाई आपको ढेरों दाद कबूलें
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